MP Board Class 12th Political Science Trimasik paper Solution Imp Questions | एम पी बोर्ड 12th राजनीति विज्ञान त्रैमासिक पेपर सलूशन पीडीऍफ़

हाल ही में मध्य प्रदेश बोर्ड ने वर्ष 2021-22 के लिए छात्रों के त्रैमासिक परीक्षा के लिए निर्देश जारी किये है . बोर्ड के अनुसार सभी बच्चों के त्रैमासिक एग्जाम 24 सितम्बर से शुरू होंगे जिसमे एक प्रश्न पत्र होगा और उसके सभी प्रश्नों का हल करना अनिवार्य होगा . सभी विद्यार्थियों को कक्षा 9 से 12 तक सभी विद्यार्थियों को अपनी कक्षा से सम्बंधित पाठ्यक्रम ( syllabus ) का पता होना बेहद ज्यादा जरूरी है .

 

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MP Board Class 12th Political Science Trimasik paper Solution Imp Questions | एम पी बोर्ड 12th राजनीति विज्ञान त्रैमासिक पेपर सलूशन पीडीऍफ़

MP Board Class 12th Political Science Trimasik paper Solution Imp Questions

दोस्तो इस पोस्ट में हम आपको  political science के most important questions के full solution लेके आये है। आपके त्रिमासिक परीक्षा में जितना syllabus आने वाला है। उसी shyllabus को कवर किया गया है प्रश्नो को chapter वाइज लिखा गया है। आप इस पोस्ट को पूरा अवश्य पड़े । ये आपके लिए बहुत हि लाभदायक सिध्द होगी।

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Part – A

समकालीन विश्व राजनीति

Chapter – 1 
शीत युद्ध का दौर

प्रश्न 1. शीत युद्ध की समाप्ति की घोषणा किसने और कब की थी?

उत्तर- 5-6 जुलाई, 1990 को लन्दन में दो दिवसीय नाटो शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने शीत युद्ध की समाप्ति की घोषणा की थी।

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प्रश्न 2.  सोवियत संघ तथा अमेरिका के बीच ह्वाइट हाउस समझौता कब हुआ था?

उत्तर-16 जून, 1992 को

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प्रश्न 3. विश्व में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रभावशाली नेतृत्व किसने किया?

उत्तर-विश्व में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रभावशाली नेतृत्व भारत ने किया।

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प्रश्न 4. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन से जुड़े नए देशों के नाम लिखिए।

उत्तर-अजरबेजान तथा फिजी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के नए देश हैं।

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प्रश्न 5.  16वाँ गुट-निरपेक्ष सम्मेलन कब और कहाँ हुआ?

उत्तर-  16वाँ गुट-निरपेक्ष सम्मेलन 17-18 सितम्बर, 2016 को पोरलामार (वेनेजुएला) में हुआ था।

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प्रश्न 6. गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों की दो पहचान लिखिए।

उत्तर-   (1) गुट-निरपेक्ष राष्ट्र शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व पर आधारित एक स्वतन्त्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए किसी भी शक्ति खेमे से जुड़ा नहीं होता।

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(2) गुट-निरपेक्ष राष्ट्र की दूसरी पहचान है कि वह सदैव राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलनों का समर्थन करता है।

प्रश्न 7. महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन क्यों रखती थीं? तीन कारण बताइए।

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उत्तर-   छोटे देशों के साथ महाशक्तियाँ निम्नलिखित कारणों की वजह से सैन्य गठबन्धन रखती थीं-

(1) भू-क्षेत्र-महाशक्तियाँ (अमेरिका तथा सोवियत संघ) इन छोटे देशों के यहाँ अपने-अपने हथियारों की बिक्री करती थीं तथा इन देशों में अपने सैन्य अड्डे स्थापित करके सैन्य गतिविधियों का संचालन करती थीं।

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(2) महत्त्वपूर्ण संसाधनों को प्राप्त करना-छोटे देशों से महाशक्तियों को तेल तथा खनिज पदार्थ इत्यादि मिलते थे।

(3) जासूसी केन्द्र-दोनों महाशक्तियाँ छोटे देशों में अपने ठिकाने बनाकर परस्पर एक-दूसरे गुट की जासूसी करती थीं।

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प्रश्न 8.  शीत युद्ध के सामान्य कारणों को लिखिए।

उत्तर-  शीत युद्ध के सामान्य कारणों को संक्षेप में निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

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(1) शीत युद्ध का सामान्य कारण संघर्षों की अनिवार्यता था।

(2) विचारधाराओं का टकराव भी शीत युद्ध का सामान्य कारण था।

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(3) शीत युद्ध को उदित करने में सोवियत संघ तथा पश्चिमी राष्ट्रों के पारस्परिक सन्देह एवं अविश्वास ने भी निर्णायक भूमिका का निर्वहन किया था।

(4) विजित प्रदेशों पर नियन्त्रण की इच्छा भी शीत युद्ध का सामान्य कारण रही।

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(5) परस्पर विरोधी प्रचार भी शीत युद्ध का सामान्य कारण रहा।

प्रश्न 9.  गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रमुख उद्देश्यों को संक्षेप में लिखिए।

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उत्तर- गुटनिरपेक्ष आंदोलन  निम्नलिखित कारण  थे-

(1) एशिया, अफ्रीका तथा नव स्वतन्त्र एवं विकासशील देशों को सशक्त कर उनकी आवाज को विश्व स्तर पर उठाना,

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(2) प्रत्येक प्रकार के साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध करना तथा इसकी समाप्ति के लगातार प्रयास करते रहना,

(3) विश्व की समस्त समस्याओं के शान्तिपूर्ण समाधान तलाशने पर बल देना,

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(4) संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन करते हुए इस मंच पर पारस्परिक एकता को प्रदर्शित करना, तथा

(5) नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था हेतु संगठनात्मक प्रयास करना।

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प्रश्न 10. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर शीत युद्ध के पाँच प्रभावों को लिखिए।

उत्तर-  शीत युद्ध का प्रभाव अथवा परिणाम अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का निम्नांकित प्रभाव पड़ा था-

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(1) विश्व दो गुटों में विभक्त-शीत युद्ध की वजह से विश्व राजनीति द्वि-ध्रुवीय हो गई। सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका अलग-अलग गुटों का नेतृत्व करने लगे।

(2) आतंक एवं अविश्वास में वृद्धि-शीत युद्ध की वजह से देशों के बीच परस्पर अविश्वास, आतंक, तनाव तथा प्रतिस्पर्धा इत्यादि की भावना को पुष्पित एवं पल्लवित होने का अवसर मिला।

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(3) आणविक युद्धों का खतरा-द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रयुक्त किए गए आणविक हथियारों की विनाशलीला से दुनिया के सभी देश भयभीत हो गये थे। उन्हें यह भय सदैव सताता था कि शीत युद्ध में आणविक हथियारों को बनाने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी है। यदि इनको कभी प्रयोग करने की स्थिति बनी तो विश्व का महाविनाश हो जाएगा। यहाँ तक कि निर्माणकर्ता भी शेष नहीं बचेगा।

(4) शस्त्रीकरण की दौड़ तथा विश्व का यान्त्रिकीकरणा-शीत युद्ध की वजह से विश्व के अनेक देशों में हथियारों की अंधी दौड़ को बढ़ावा मिला, जिससे नि:शस्त्रीकरण का मार्ग कथिनहो गया।

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(5) संयुक्त राष्ट्र संघ की कमजोर स्थिति-अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का एक प्रभाव यह पढ़ा कि इसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थिति निर्बल हो गयी थी।

(6) निर्गुट आन्दोलन को प्रोत्साहन-शीत युद्ध के दुष्परिणामों से रक्षार्थ विश्व में निर्गुट अथवा गुट निरपेक्ष आन्दोलन का उदय हुआ।

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(7) सैन्य सन्धियों का अस्तित्व-शीत युद्ध के दौरान नाटो, सीटो, सेण्टो तथा वारमः पैक्ट इत्यादि जैसी अनेक सैनिक सन्धियाँ की गई थी, जिससे शीत युद्ध में उष्णता आ गई।

प्रश्न 11. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की असफलता पर एक लेख लिखिए।

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उत्तर –  गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की असफलता के निम्नलिखित कारण हैं-

(1) सिद्धान्तहीन आन्दोलन-गुट-निरपेक्षता एक अवसरवादी एवं कार्य निकालने की नीति है, क्योंकि इस आन्दोलन से सम्बद्ध देश सिद्धान्तहीन हैं। साम्यवादी तथा पूँजीवादी गुटों के साथ अपने सम्बन्धों के सन्दर्भ में वे दोहरा मापदण्ड प्रयुक्त करते हैं। उनका ध्येय पश्चिमी एवं साम्यवादी दोनों गुटों से अधिकाधिक लाभ अर्जित करना है।

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(2) बाहरी आर्थिक एवं रक्षा सहायता पर निर्भरता-गुट-निरपेक्षता आन्दोलन की एक बड़ी कमजोरी यह है कि इससे सम्बद्ध देश अपनी आर्थिक एवं रक्षा सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य देशों पर आश्रित हैं। सच्ची गुट-निरपेक्षता का आधार आर्थिक निर्भरता है यदि कोई देश किसी प्रकार की सहायता हेतु अन्य राष्ट्रों पर आश्रित है, तो इसका आशय है कि उस देश की स्वतन्त्रता एवं गुट-निरपेक्षता को उसने दाँव पर लगा दिया है। उदाहरणार्थ-भारतीय नीतियाँ विश्व बैंक के दिशा निर्देशों के अनुरूप बनायी जाती हैं।

(3) विभाजित आन्दोलन-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन अन्य देशों को संगठित करने के स्थान पर स्वयं ही विभाजित है। 1979 के हवाना सम्मेलन में यह तीन भागों में विभक्त था। यह विभाजन प्रमाणित करता है कि गुट-निरपेक्ष आन्दोलन दिशाहीन है तथा महाशक्तियाँ इसे अपने हाथों में खिलौने की भाँति प्रयोग करती हैं।

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(4) ठोस योजना का अभाव-गुट-निरपेक्ष आन्दोलन से सम्बद्ध देशों में मौलिक एकता का अभाव है। समृद्ध राष्ट्रों के शोषण के खिलाफ मोर्चाबन्दी करना तो काफी दूर रहा वे आपस में एक-दूसरे की मदद करने की कोई ठोस योजना भी निर्मित नहीं कर पाए हैं।

(5) समकालीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था-शीत युद्ध की समाप्ति, सोवियत संघ के बिखराव, जर्मनी एकीकरण, वारसा सन्धि के समाप्त होने तथा नवीन राष्ट्रों के प्रादुर्भाव इत्यादि ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव की हवा चला दी है। चूँकि गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रमुख कार्य विश्व को गुटों के विभाजन से मुक्त कराना था तथा अब विश्व में एकलध्रुवीय व्यवस्था है, तो ऐसी परिवर्तित स्थिति में यह आन्दोलन निरर्थक हो गया है। इसके आलोचकों का अभिमत है कि या तो गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को समाप्त करना पड़ेगा अथवा किसी नवीन आन्दोलन में परिवर्तित करना पड़ेगा।

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Chapter –  2   
दो ध्रुवीयता का अंत

प्रश्न 1. रूस ने किस प्रकार की अर्थव्यवस्था को अपनाया?

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उत्तर- सोवियत संघ के राजनीतिक उत्तराधिकारी रूस में उदारवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया और वहाँ तेजी से निजीकरण की प्रक्रिया का विकास हुआ।

प्रश्न 2. सोवियत प्रणाली के कोई दो दोष (अवगुण) लिखिए।

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उत्तर-(1) धीरे-धीरे सोवियत प्रणाली समाजवादी हो गई जिसमें नौकरशाही का प्रभाव बढ़ा।

(2) सोवियत संघ में एकदलीय (कम्युनिस्ट पार्टी) का शासन था जो किसी के भी प्रति उत्तरदायी नहीं था।

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प्रश्न 3. सोवियत संघ के विघटन के दो कारण लिखिए।

उत्तर-(1) तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति गोर्बाचेव द्वारा चलाए गए आर्थिक एवं राजनीतिक सुधार कार्यक्रम तथा (2) सोवियत गणराज्यों में लोकतान्त्रिक एवं उदारवादी भावनाऐं पैदा होना।

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प्रश्न 4. भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?

उत्तर-भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के परिणामों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

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(1) सोवियत संघ के विघटन के बाद भारतीय विदेश नीति में बदलाव आया तथा उसने सोवियत संघ से अलग हुए सभी गणराज्यों से नए परिपेक्ष्य में अपने सम्बन्ध स्थापित कर अपनी छवि को अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर और अधिक सुधारा।

(2) सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् भारत जैसे देशों ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शक्तिशाली एवं महत्त्वपूर्ण अर्थव्यवस्था मानते हुए उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की नीतियों को अपनाया।

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(3) भारत जैसे देशों ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को त्यागकर नवीन उदारवादी आर्थिक नीति को अपनाया।

(4) सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत जैसे देशों के लिए किसी राष्ट्र से अटूट सम्बन्ध स्थापित करने हेतु किसी गुट विशेष में शामिल होने की बाध्यता नहीं रही।

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(5) सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप शीत युद्ध का अन्त हुआ जिसकी वजह से हथियारों की प्रतिस्पर्धा भी समाप्त हो गई।

प्रश्न 5. शॉक थेरेपी के किन्हीं चार परिणामों को संक्षेप में लिखिए।

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उत्तर-  शॉक थेरेपी के चार प्रमुख परिणाम निम्न प्रकार हैं-

(1) शॉक थेरेपी से सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था चरमरा गई तथा जन साधारण को बरबादी का दौर देखना पड़ा।

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(2) शॉक थेरेपी से मुद्रा स्फीति में बढ़ोत्तरी हुई। रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में अत्यधिक गिरावट आई। मुद्रास्फीति इतनी अधिक बढ़ी कि जमा पूँजी भी चली गई।

(3) निजीकरण से नवीन विषमताओं का प्रादुर्भाव हुआ और गरीब एवं अमीर के बीच गहरी खाई और अधिक चौड़ी हो गई।

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(4) हालाकि की आर्थिक बदलाव को अत्यधिक प्राथमिकता दी गई तथा उसे पर्याप्त स्थान भी दिया गया लेकिन लोकतांत्रिक संस्थाओं के निर्यात का कार्य ऐसी प्राथमिकता के साथ नहीं हो सका।

प्रश्न 6. भारत रूस के आपसी संबंधों से भारत किस प्रकार लाभान्वित हुआ है?

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उत्तर- भारत-रूस के आपसी सम्बन्धों से भारत निम्न प्रकार लाभान्वित हुआ-

(1) भारत को रूस से ऊर्जा संसाधनों एवं संयन्त्र, तेल और जीवाश्म ईंधन मिलता है जिससे हमारे देश की विभिन्न परियोजनाएँ सुचारु रूप से संचालित होती हैं।

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(2) समय-समय पर भारत को रूस से युद्ध में प्रयुक्त होने वाले हथियारों की आपूर्ति होती है जिससे हमारे सैन्य बल नवीन तकनीकी एवं युद्ध सामग्री से सुसज्जित हुए हैं।

(3) रूस ने समय-समय पर हमें अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध कराई जिससे हमारा देश भारत आतंकवाद से सामना करने में और अधिक सक्षम हो पाया।

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(4) रूस भारत के साथ चीनी शक्ति सन्तुलन को बनाए रखने तथा मध्य एशिया में भारतीय पहुँच बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निवर्हन करता चला आ रहा है।

(5) भारत को रूस में अपनी संस्कृति, भाषा, साहित्य तथा फिल्मों इत्यादि का प्रसार-प्रचार तथा विस्तार करने का काफी लाभ हुआ। रूस में सदैव भारतीय संस्कृति एवं साहित्य की प्रतिष्ठापूर्ण स्थिति रही है। रूस के घर-घर में जहाँ भारतीय फिल्मी कलाकारों को अच्छी तरह जाना जाता है वहीं हमारे देश के फिल्मी गीतों तथा गजलों की भी रूस में धूम मची रहती है।

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Chapter – 3  
वसमकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व

प्रश्न 1. प्रभुत्व का क्या अभिप्राय है? अमेरिकी प्रभुत्व का युग कब प्रारम्भ हुआ?

उत्तर-  अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति का एक ही केन्द्र होना, प्रभुत्व कहलाता है। अमेरिकी प्रभुत्व शीत युद्ध के पश्चात् 1991 में शुरू हुआ।

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प्रश्न 2. ‘बैण्डवैगन’ अथवा ‘जैसी बहे ब्यार पीठ तैसी कीजै’ रणनीति का क्या अर्थ है?

उत्तर-  किसी देश को विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली देश के खिलाफ रणन बनाने के स्थान पर उसके वर्चस्व तन्त्र में रहते हुए अवसरों का लाभ उठाने की रणनीति को ‘बैण्डवैगन’ अथवा ‘जैसी बहे ब्यार पीठ तैसी कीजै’ की रणनीति कहा जाता है।

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प्रश्न 3. अपने को छुपा लें’ नीति का क्या अभिप्राय होता है?

उत्तर-  इसका अभिप्राय दबदबे वाले देश से जहाँ तक हो सके दूर-दूर रहना है। रूस तथा यूरोपीय संघ भिन्न-भिन्न प्रकार से स्वयं को अमेरिकी नजर में आने से बचते रहे हैं।

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प्रश्न 4. अलकायदा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर- इस्लामी राज समर्थक एवं पोषक अलकायदा पूर्णरूपेण धार्मिक एवं राजनीतिक आतंक की मदद से धार्मिक वर्चस्व स्थापित करने वाला संगठन है। अलकायदा की जड़ें अफगानिस्तान से जुड़ी हैं। संगठन के अनुयायी अनेक राजनीतिक संगठनों तथा उसकी कर्मभूमि को समूल नष्ट किए जाने में आस्था रखते हैं। आधुनिक हथियारों से लैस संगठन के कार्यकर्ता किसी की हत्या करना तथा अपनी जान देना बड़ी सरलता से एक खेल की तरह से करने में दक्ष हैं। अलकायदा अतिवादी इस्लामी आतंकी संगठन है जिसके विरुद्ध विश्वव्यापी अभियान के अन्तर्गत अमेरिका ने ऑपरेशन एण्ड्यूरिंग फ्रीडम चलाया। इस अभियान का प्रमुख लक्ष्य अलकायदा तथा अफगानिस्तान का तालिबान शासन था। अमेरिका ने तालिबान सर्वोच्च कमाण्डर ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तानी क्षेत्र में मौत के घाट उतार दिया लेकिन इसके बावजूद भी तालिबान तथा अलकायदा के अवशेष अभी भी सक्रिय हैं। विभिन्न पाश्चात्य देशों में इनकी तरफ से आतंकी हमले जारी हैं जिससे इनकी सक्रियता का आभास किया जा सकता है।

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प्रश्न 5. अमेरिकी वर्चस्व के किन्हीं चार रूपों को संक्षेप में लिखिए।

उत्तर-  अमेरिकी वर्चस्व के चार रूपों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

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(1) अमेरिकी वर्चस्व का आधार स्तम्भ उसकी सैन्य शक्ति है। वर्तमान अमेरिकी सैन्य शक्ति स्वयं में सम्पूर्ण तथा विश्व के समस्त देशों में बेजोड़ है।

(2) विश्व अर्थव्यवस्था में एकमात्र अपनी इच्छा चलाने वाला देश अमेरिका है जो व्यवस्था को लागू करने तथा उसे लगातार बनाए रखने की प्रचुर आर्थिक क्षमता रखता है।

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(3) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं में अमेरिका का ही वर्चस्व है। विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व व्यापार संगठन इत्यादि संस्थाओं में उसी के द्वारा ही बनाए गए नियम कानून लागू किए जाते हैं।

(4) अमेरिकन भाषा-शैली एवं साहित्य, विविध कलाओं, जीवन प्रणाली तथा फिल्म इत्यादि को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका उसे किसी-न-किसी रूप में प्रोत्साहन देता है। उसके पास अन्य देशों को इस तथ्य से सहमत करने की अपार शक्ति भी है।

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Part B

स्वतन्त्र भारत मे राजनीति

Chapter- 1

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राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां

प्रश्न 1. इन्स्ट्रमेण्ट ऑफ एक्सेशन (विलय-पत्र) क्या था?

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उत्तर- इसके द्वारा कोई भी देशी नरेश भारतीय संघ में सम्मिलित हो सकता था लेकिन उसे प्रतिरक्षा, विदेश सम्बन्ध तथा यातायात एवं संचार व्यवस्था का दायित्व संघीय सरकार को सौपना होता था।

प्रश्न 2. सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का बिस्मार्क क्यों कहा जाता है?

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उत्तर-पटेल से अपनी सूझबूझ तथा परिश्रम से भौगोलिक, राजनीतिक तथा आर्थिक दृष्टिकोण से भारत के एकीकरण को पूरा किया जिस कारण उन्हें भारत का बिस्मार्क कहा गया।

प्रश्न 3. आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अन्तर क्या थे?

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उत्तर- आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो प्रमुख अन्तर निम्नलिखित थे-

(1) स्वतन्त्रता के साथ देश के पूर्वी क्षेत्रों में सांस्कृतिक एवं आर्थिक सन्तुलन की समस्या थी जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में विकास सम्बन्धी चुनौती विद्यमान थी।

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(2) जहाँ देश के पूर्वी क्षेत्रों में भाषाई समस्या अधिक थी वहीं पश्चिमी क्षेत्रों में धार्मिक एवं जातिवाद की समस्या मुँह खोले खड़ी थी।

प्रश्न 4. राज्य पुनर्गठन आयोग का काम क्या था? इसकी  प्रमुख सिफारिश क्या थीं?

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उत्तर-भारत सरकार ने 1953 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन हेतु एक आयोग बनाया। फजल अली की अध्यक्षता में गठित इस आयोग का कार्य राज्यों के सीमांकन के मामले में कार्यवाही करना था। राज्य पुनर्गठन आयोग ने सितम्बर 1955 में 267 पृष्ठीय अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। आयोग ने प्रमुख रूप से निम्न सिफारिशें की थी-

(1) राज्यों के पुनर्गठन में राष्ट्रीय एकता को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की जाए।

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2) राज्यों के पुनर्गठन में भारतीय एकता को भी दृष्टिगत रखा जाए।

(3) भारतीय संविधान में वर्णित राज्यों के चार पक्षीय वर्गीकरण को समाप्त करके राज्यों को एक सामान्य श्रेणी में रखा जाएगा।

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(4) आयोग ने एक भाषा एक राज्य के विचार से असहमति व्यक्त करते हुए स्वीकार किया कि भाषायी एकरूपता प्रशासकीय कर्मठता में सहायक सिद्ध हो सकती है।

(5) वित्तीय एवं प्रशासनिक विषयों की ओर समुचित ध्यान दिया जाए।

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आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित करके 14 राज्य तथा 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गए। भारतीय संविधान में वर्णित मूल वर्गीकरण के चार श्रेणियों को समाप्त करके दो प्रकार की इकाइयाँ (स्वायत्त राज्य तथा केन्द्र शासित प्रदेश) रखी गईं।

प्रश्न 5. कहा जाता है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थ में कल्पित समुदाय होता है और सर्वमान्य विश्वास इतिहास राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओं से एक सूत्र में बंधा होता है इन विशेषताओं की पहचान करें जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र है।

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उत्तर-

 भारत की एक राष्ट्र के रूप में विशेषताएँ

निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत एक राष्ट्र है-

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(1) भौगोलिक एकता- सीमाओं के दृष्टिकोण से हमारा देश कश्मीर से कन्याकुमारी तथा गुजरात से लेकर असम तक स्वतन्त्र भौगोलिक इकाई से घिरा है। विशाल भारत में अनेक जन समुदाय रहते हैं जो पुराने समय से ही इस देश में अपने पुरखों के सर्वमान्य विश्वासों एवं परम्पराओं में कुछ बदलाव लाते रहते हैं। भारत में भौगोलिक एकता के साथ जातीय, भाषायी तथा धार्मिक भिन्नताएँ हैं।

(2) मातृभूमि के प्रति श्रद्धा एवं प्रेम- प्रत्येक राष्ट्र का स्वभाविक लक्षण एवं विशेषता मातृ भूमि से प्रेम है। एक ही स्थान अथवा प्रदेश में जन्मे व्यक्ति अपनी मातृभूमि से प्रेम करते है तथा इसी प्यार की वजह से वे परस्पर एक भावना से बँध जाते हैं। उदाहरणार्थ-विदेशों में बसे लाखों भारतीय अपनी मातृभूमि से प्रेम की वजह से ही सदैव अपने आपको भारत की राष्ट्रीयता का हिस्सा समझते हैं।

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(3) सांस्कृतिक विरासत एवं इतिहास-   भारत की सांस्कृतिक विरासत एवं इतिहास उसे एक राष्ट्र बनाते हैं भारतीय संस्कृति की एक विशिष्ट पहचान की वजह से हमें विश्व गुरु माना जाता है हमारा अपना राजनीतिक आर्थिक सामाजिक तथा सांस्कृतिक इतिहास है जिसे आगामी पीढ़ियों के लिए स्थानांतरित करने का प्रयास समाज सुधार को भक्तों सूफी संतों इत्यादि ने किया है

(4) संचार साधन-साहित्यकार एवं जन संचार माध्यम भारत को एक राष्ट्र बनाने में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं।भारत में फैलता हुआ सड़कों, रेलों, वायुयानों तथा जलयानों जैसे यातायात साधनों का जाल तथा उन्नत प्रौद्योगिकी वाली संचार व्यवस्था देश को एक सुदृढ़ राष्ट्र बनाने में आधार प्रदान कर रही है।

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(5) लोकतन्त्र-आजादी के बाद से लेकर आज तक भारत में सुदृढ़ लोकतन्त्र की स्थापना हुई है। भारतीय लोकतन्त्र का उद्देश्य लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं, कल्पनाओं तथा सर्वमान्य आस्थाओं को एक ठोस आधार प्रदान करना है।

प्रश्न 6. शरणार्थी समस्या का स्वरूप संक्षेप में लिखिए।

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उत्तर-भारत विभाजन देश के लोगों के लिए एक अत्यधिक दु:खदायी घटना थी विभाजन से उत्पन्न अनेक समस्याओं में सर्वाधिक जटिल कठिनाई अल्पसंख्यकों की थी इन अल्पसंख्यकों में भारत से जाने वाले मुसलमान तथा पाकिस्तान से आने वाले हिन्दू और सिक्ख थे। अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों से हिंसा बढ़ती चली गयी तथा दोनों तरफ है। अल्पसंख्यकों के पास एक यही रास्ता था कि वे अपने-अपने घरों को छोड़ दें। हालांकि मुस्लिमों के पास भारत अथवा पाकिस्तान किसी भी देश में रहने का विकल्प था जबकि सिक्खों के सामने ऐसा कोई विकल्प मौजूद न था तथा उन्हें सिर्फ भारत में ही रहना था। सिक्खों के भारत में सहर्ष रहते हुए सदैव स्थानीय लोगों पर विश्वास किया, जबकि भारत में रहने वाले मुस्लिम हमेशा अपने पास-पड़ोस के प्रति भी सशंकित रहे।

प्रश्न 7. ऐसा क्यों कहा जाता है कि 1947 का वर्ष अभूतपूर्व हिंसा तथा त्रासदी का वर्ष था ? संक्षेप में लिखिए।

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उत्तर- 1947 को अभूतपूर्व हिंसा एवं त्रासदी का वर्ष निम्नलिखित कारणों से कहा जाता है-

(1) 14-15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को ब्रिटिश भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिली। यह स्वतन्त्रता देश के बँटवारे के रूप में मिली थी। धार्मिक उन्माद के कारण भारत के अनेक हिस्सों में साम्प्रदायिक दंगे हुए। इस हिंसा में लाखों लोगों को अपनी जान देनी पड़ी, अनेक लोगों को अपमानित होना पड़ा तथा करोड़ों की सम्पत्ति जलकर राख में बदल गयी।

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(2) विस्थापन के कारण लाखों हिन्दुओं, सिक्खों तथा मुसलमानों को अपना घर-बार गाँव एवं शहर छोड़ने को विवश होना पड़ा। अपने प्रियजनों एवं रिश्तेदारों से बिछुड़कर कई लोगों को तो अपना धर्म तक परिवर्तित करने हेतु बाध्य होना पड़ा था।

प्रश्न 8. भारत ने कश्मीर के महाराज की किस प्रकार मदद की थी?

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उत्तर-22 अक्टूबर, 1947 को उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त के सशस्त्र पठान कबीलों ने कश्मीर पर हमला बोल दिया, जिससे घबराकर महाराज हरीसिंह ने भारत से सैन्य कार्यवाही करने की मदद माँगी। भारत ने महाराज के इस निवेदन को कश्मीर के भारतीय संघ में विलय की शर्त पर स्वीकारा। 23 अक्टूबर को महाराज हरीसिंह ने कश्मीर के भारत में विलय का फैसला लिया और 26 अक्टूबर को तत्सम्बन्धी समझौते को हस्ताक्षरित किया। तत्काल ही महाराज की मदद हेतु भारतीय सैनिकों की प्रथम टुकड़ी 27 अक्टूबर, 1947 को हवाई जहाज से कश्मीर छापामारों को खदेड़ने हेतु पहुँच गई।

प्रश्न 9. भारत विभाजन के किन्हीं पाँच कारणों का वर्णन कीजिए।

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उत्तर– भारत विभाजन के प्रमुख कारणों का उल्लेख निम्नलिखित शीर्षकों द्वारा किया जा सकता है-

(1) हिन्दू-मुस्लिम फूट – हालांकि हिन्दू तथा मुसलमान शताब्दियों तक मिल-जुलकर साथ-साथ रहे थे। लेकिन फिर भी अंग्रेज उनके मध्य फूट डालने में सफल रहे। मुस्लिमों में यह भावना घर कर गयी कि उनके तथा हिन्दुओं के हितों में काफी भिन्नताएँ हैं।इन मतभेद ने आग में घी जैसा कार्य किया, जो आगे चलकर भारत विभाजन का एक कारण बना।

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(2)  साम्प्रदायिकता को अंग्रेजी हुकूमत द्वारा प्रोत्साहन-अंग्रेजी हुकूमत ने 1870 से ही मुसलमानों को संरक्षण देने की शुरुआत कर दी थी। भारत शासन अधिनियम 1909 द्वारा साम्प्रदायिक निर्वाचन की आधारशिला रखी गई। ब्रिटिश सरकार ने दो राष्ट्रों के सिद्धान्त का समर्थन करके मुस्लिम लीग को प्रत्येक सम्भव सहयोग दिया। इसका परिणाम आजादी की सुखद अनुभूति के साथ भारत-विभाजन की कष्टप्रद त्रासदी थी।

(3) कांग्रेस का मुस्लिम लीग के प्रति रवैया-अनेक अवसरों पर कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की अनुचित माँगों को भी मान लिया था। उदाहरणार्थ-1916 का लखनऊ समझौता इस दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ। चूँकि कांग्रेस ने सिद्धान्तों का परित्याग करके मुस्लिम लीग से समझौते किए जिसके फलस्वरूप लीग के मनोबल में अभिवृद्धि हुई। लीग का बढ़ा हुआ यही मनोबल भारत का विभाजन कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कर गया।

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(4) लीग सदस्यों का अन्तरिम सरकार में सम्मिलित होना-अन्तरिम सरकार में मुस्लिम लीग के सदस्यों को सम्मिलित करने का प्रतिफल सरकार की कार्यकारिणी के विभाजन के रूप में सामने आया। इस विभाजन की वजह से सरकार हिन्दू-मुस्लिमों के बीच हुए साम्प्रदायिक दंगों पर प्रभावी रोक लगाने में असमर्थ रही तथा मजबूर होकर कांग्रेस को भारत का विभाजन स्वीकारना पड़ा था।

(5) भारतीयों को सत्ता देने में सरकारी दृष्टिकोण – 1929 से 1945 की अवधि में ब्रिटिश सरकार तथा भारतीयों के आपसी सम्बन्धों में अत्यधिक कटुता पैदा हो चुकी थी। ब्रिटेन की सरकार यह अनुभव करने लगी थी कि भारत आजादी मिलने के बाद ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल का सदस्य कभी नहीं रहेगा। अत: अंग्रेज सरकार ने सोचा कि यदि स्वतन्त्र भारत अमैत्रीपूर्ण है तो उसे कमजोर बना देना ही उचित है। पाकिस्तान का निर्माण अखण्ड भारत को विभाजित कर देगा और आगे चलकर उपमहाद्वीप में यह दोनों देश परस्पर लड़कर अपनी शक्ति का कमजोर करते रहेंगे ब्रिटिश हुकूमत की यह सोच आज सत्य हो रही है।

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chepter – 2
एक दल के प्रभुत्व का दौर

प्रश्न 1. सर्वप्रथम किस भारतीय भाग में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव हुए थे?

उत्तर-भारत में सर्वप्रथम हिमाचल प्रदेश की’चीनी’ तहसील में 25 अक्टूबर, 1951 को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाकर चुनाव सम्पन्न हुए थे।

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प्रश्न 2. भारतीय जन संघ के किन दो प्रमुख विचारों पर विशेष रूप से बल दिया था?

उत्तर- (1) एक देश, एक संस्कृति तथा एक राष्ट्र,

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(2) भारत द्वारा आण्विक हथियारों के निर्माण को समर्थन।

प्रश्न 3. एक दलीय प्रभुत्व वाली दल प्रणाली के कोई चार लाभ संक्षेप में लिखिए।

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उत्तर- एक दलीय प्रभुत्व वाली दल प्रणाली के अनेक लाभ हैं जिन्हें संक्षेप में निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) इसमें सत्तारूढ़ दल की स्थिति अत्यधिक सुदृढ़ होती है तथा वह स्वतन्त्र रूप से शासकों द्वारा संचालित कर सकता है।

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(2) एक प्रभुत्व वाली दल प्रणाली में शासन में स्थायित्व रहता है तथा राष्ट्रीय नीतियों में व्यापक बदलाव नहीं किए जाते जिसमें उनमें निरन्तरता बनी रहती है।

(3) एक प्रभुत्व दल प्रणाली का एक लाभ यह भी है कि इससे कानून व्यवस्था की स्थिति समाज में सुदृढ़ रहती है तथा शासन का संचालन सामाजिक व आर्थिक विकास हेतु आसानी से किया जा सकता है।

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(4) यह प्रणाली आपातकालीन परिस्थितियों का सरलतापूर्वक सामना कर सकती है।

प्रश्न 4. एक प्रभुत्व वाली दल प्रणाली की चार हानियाँ लिखिए।

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उत्तर- एक प्रभुत्व वाली दल प्रणाली की चार हानियाँ निम्न प्रकार हैं-

(1) एक दलीय प्रभुत्व व्यवस्था लोकतन्त्र की सफलता एवं विकास हेतु अनुचित है।

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2) इसमें प्रभुत्वशाली दल शासन का संचालन तानाशाही तरीकों से करने लगते हैं जिससे शक्ति का दुरुपयोग होता है।

(3) एक दलीय प्रभुत्व व्यवस्था में विपक्ष काफी कमजोर हो जाता है। अतः सरकार की गलत नीतियों की आलोचना प्रभावशाली तरीके से नहीं हो पाती है।

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(4) एक दलीय प्रभुत्व व्यवस्था के आगे चलकर तानाशाही व्यवस्था में बदलने का डर अथवा भय होने की वजह से जनसाधारण के अधिकार एवं स्वतन्त्रताओं पर अंकुश की सम्भावना रहती है।

प्रश्न 5. भारतीय राजनीति में 1967 के बाद कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट के प्रमुख कारणों को समझाईए।

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उत्तर– भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की विरासत का प्रभाव देश की राजनीति पर व्यावहारिक रूप से 1962 के चुनावों तक ही रहा तदुपरान्त धीरे-धीरे यह प्रभाव कम होता चला गया। 1967 के आम चुनावों में कांग्रेस को साधारण बहुमत से सरकार बनाने लायक ही सीटें (स्थान) मिल पाए। सुस्पष्ट था कि अब कांग्रेस के प्रभुत्व में कमी आई थी। संक्षेप में कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं-

(1) 1964 में पण्डित जवाहरलाल नेहरू के निधन हो जाने के बाद कांग्रेस में उन जैसा कोई चमत्कारिक व्यक्तित्व का धनी व्यक्ति नहीं था।

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(2) 1964 में भारत में साम्यवादी दल, भारतीय जन संघ, मुस्लिम लीग तथा समाजवादी दल जैसे अन्य राजनीतिक दलों के प्रभाव में बढ़ोत्तरी हुई।

3) विभिन्न भारतीय हिस्सों में क्षेत्रवादी भावनाएँ प्रबल हुईं जिनके परिणामस्वरूप अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दल संगठित होने लगे।

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(4) कांग्रेसी सरकार ने विरोधी दलों के खिलाफ कुछ संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग किया जिसकी वजह से लोगों में कांग्रेस के खिलाफ नकारात्मक विचारधारा पैदा हुई।

(5) विभिन्न राजनीतिक दलों ने कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक में सेंध लगा दी जिससे कांग्रेस को कम स्थानों पर विजय मिल पाई।

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(6) राज्यों में मिली जुली सरकारों के गठन की राजनीति प्रारम्भ हो गयी थी तथा अनेक प्रदेशों में गैर-कांग्रेसी सरकारें सत्तारूढ़ होकर सफलतापूर्वक अपने कार्यों को क्रियान्वित कर रही थीं।

Chapter – 3
नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 1. हरित  क्रान्ति क्या थी? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों  का उल्लेख कीजिए।

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उत्तर-  हरित क्रान्ति का आशय हरित क्रान्ति का तात्पर्य सिंचित तथा असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली किस्मों को आधुनिक कृषि प्रणाली से उगाकर कृषि उपज में जहाँ तक हो सके अधिक से अधिक बढ़ोत्तरी करना है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि कृषिगत उत्पादन की तकनीक को सुधारना तथा कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि करना ही ‘हरित क्रान्ति’ है।

हरित क्रान्ति के सकारात्मक परिणाम-हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक परिणाम निम्नांकित हैं-

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(1) हरित क्रान्ति से धनिक कृषकों तथा बड़े भू-स्वामियों को सर्वाधिक फायदा (लाभ) हुआ। इससे खेतीहर पैदावार में सामान्य किस्म की वृद्धि हुई अर्थात् गेहूँ की पैदावार बढ़ी तथा उसके फलस्वरूप भारत में खाद्यान्न की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी हुई।

(2) हरित क्रान्ति की वजह से कृषि में मध्यम श्रेणी के भू-स्वामियों एवं कृषकों को लाभ हुआ। चूँकि हरित क्रान्ति मध्यम श्रेणी के किसानों के लिए लाभप्रद रही थी। अतः देश के विभिन्न भागों में ये लोग प्रभावशाली बनकर उभरे।

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हरित क्रान्ति के नकारात्मक परिणाम-  हरित क्रान्ति के दो प्रमुख नकारात्मक परिणाम निम्न प्रकार रहे थे-

(1) हरित क्रान्ति की वजह से गरीब कृषकों एवं भू-स्वामियों के मध्य की खाई और अधिक चौड़ी हो गई थी। इससे भारत के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों हेतु निर्धन किसानों को एकजुट करने के दृष्टिकोण से अनुकूल स्थितियाँ पैदा हुईं।

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(2) हरित क्रांति से समाज के विभिन्न वर्गो तथा भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के मध्य ध्रुवीकरण तीव्र हो गया जबकि शेष बचे हुए क्षेत्र कृषि के मामले में पिछोला बिछड़ने लगे।

प्रश्न 2. भारत में नियोजन के दो प्रमुख उदेश्य लिखिए।

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उत्तर-(1) क्षेत्रीय असन्तुलन को कम करना तथा (2)भारत की राष्ट्रीय आय में व्रद्धि करना।

प्रश्न 3. नीली क्रान्ति तथा मिल्या क्रान्ति क्या थी?

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उत्तर- दक्षिणी प्रान्तों में मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए ‘नीली क्रान्ति का तथा अण्डों के उत्पादन में वृद्धि के लिए चलाए गए अभियान को ‘सिल्वर क्रान्ति’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 4. सोवियप्रश्नत संघ द्वारा भारत पे किन दो इस्पात कारखानों को स्थापित करने मैं सहायता दी थी?

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उत्तर-(1) भिलाई इस्पात कारखाना तथा (2) बोकारो इस्पात कारखाना।

प्रश्न 5 . नीति आयोग के वर्तमान अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा मुख्य कार्यकारी अधिप्रश्नकारी कौन है?

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उत्तर-वर्तमान में नीति आयोग के अध्यक्ष नरेन्द्र मोदी, उपाध्यक्ष राजीव कुमार तथा मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कान्त हैं।

प्रश्न 6. नियोजन का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके प्रमुख उद्देश्य लिखिए।

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अथवा

नियोजन के उद्देश्य लिखिए।

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उत्तर-नियोजन का तात्पर्य उचित विधियों द्वारा भली-भाँति सोच-समझकर कदम उठाना है। एस. ई. हैरिस ने नियोजन को परिभाषित करते हुए कहा है कि “नियोजन का अर्थ आय एवं मूल्य के सन्दर्भ में सत्ता द्वारा निश्चित किए गए उद्देश्यों एवं लक्ष्यों हेतु साधनों का आवंटन मात्र है।”

नियोजन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

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(1) आय एवं सम्पत्ति के असमान वितरण को कम करके संसाधनों का समुचित उपयोग करना।

(2) आय एवं रोजगार के अवसरों में बढ़ोत्तरी करके सन्तुलित क्षेत्रीय विकास करना।

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(3) अर्थव्यवस्था को सन्तुलित बनाते हुए जनसाधारण के जीवन स्तर को सुधारना ।

(4) लोगों को अवसर की समानता उपलब्ध कराते हुए सामाजिक उत्थान के लक्ष्य को पूर्ण करना।

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प्रश्न 7. पंचवर्षीय योजनाओं के (पाँच) प्रमुख उद्देश्य लिखिए।

उत्तर- पंचवर्षीय योजनाओं के (पाँच) प्रमुख उद्देश्य-

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(1) आर्थिक संवृद्धि- इसका आशय लगातार सकल घरेलू उत्पाद तथा  प्रति सकल  घरेलू उत्पाद में वृद्धि है। लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने हेतु आर्थिक सम्वृद्धि अर्थात अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करना जरूरी है।

(2) आधुनिकीकरण–उत्पादन में सीन तकनीकी का प्रयोग करना तथा सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव को आधुनिकीकरण की उपमा दी जाती हैं।

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(3) आत्म-निर्भरता– इसका आशय उन वस्तुओं के आयात से बचना है जिनका उत्पादन देश के भीतर किया जा सकता है।

(4) न्याय अथवा समता-न्याय अथवा समता का आशय सम्पत्ति तथा आय की विषमता को कम करना और प्रत्येक के लिए आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था करना है।

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(5) सुरक्षा एवं शान्ति-पंचवर्षीय योजना का एक प्रमुख उद्देश्य सुरक्षा एवं शांति की दिशा में प्रयास करना है, क्योंकि इसके बिना किसी भी प्रकार का विकास नहीं किया सकता है।

प्रश्न 8, नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) के संगठन को लिखिए।

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उत्तर– 65 वर्षीय योजना आयोग का स्थान । जनवरी, 2015 में नीति आयोग ने ले लिया जिसका संगठन निम्न प्रकार है-

(1) अध्यक्ष नरेन्द्र मोदी (प्रधानमन्त्री)।

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(2) उपाध्यक्ष-राजीव कुमार (अर्थशास्त्री)।

(3) मुख्य कार्यकारी अधिकारी– अमिताभ कान्त।

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(4) पूर्णकालिक सदस्य-विवेक देवराय (अर्थशास्त्री), डॉ. वी. के. सारस्वत (पूर्व रक्षा सचिव आर. एण्ड डी.) तथा प्रो. रमेश चन्द्र (कृषि विशेषज्ञ)।

(5) पदेन सदस्य-राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, सुरेश प्रभु तथा राधा मोहन सिंह (सभी केन्द्रीय मन्त्री)

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(6) विशेष आमन्त्रित-नितिन गडकरी, थावर चन्द्र गहलौत तथा श्रीमती स्मृति ईरानी (सभी केन्द्रीय मन्त्री)।

(7) गवर्निग काउंसिल-भारत के सभी 28 राज्यों के मुख्यमन्त्री तथा 8 संघ शामित प्रदेशों के उपराज्यपाल।

प्रश्न 9. योजना आयोग के प्रमुख कार्य लिखिए।

उत्तर-  योजना आयोग के निम्नलिखित कार्य है-

(1देश के भौतिक पूँजीगत एवं मानवीय संसाधनों का अनुमान लगाना।

2) राष्ट्रीय संसाधनों के अधिकाधिक प्रभावी एवं सन्तुलित उपयोग हेतु योजना निर्मित करना।

(3) योजना के विभिन्न चरणों का निर्धारण करके प्राथमिकता के आधार पर संसाधनों का आवंटन करना।

(4) आर्थिक विकास में बाधक तत्वों को पहचान कर सरकार को बताना।

(5) योजना के प्रत्येक चरण के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप प्राप्त सफलता की समय-समय पर समीक्षा करके सुधारात्मक परामर्श देना। तथा

(6) केन्द्र एवं उसकी इकाई राज्यों की सरकारों द्वारा विशेष समस्या पर परामर्श माँगने पर अपनी सलाह देना।

 

 

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