MP Board Class 12th Hindi Tremasik Paper Solutions | मध्य प्रदेश बोर्ड त्रैमासिक पेपर सलूशन हिंदी

हाल ही में मध्य प्रदेश बोर्ड ने वर्ष 2021-22 के लिए छात्रों के त्रैमासिक परीक्षा के लिए निर्देश जारी किये है . बोर्ड के अनुसार सभी बच्चों के त्रैमासिक एग्जाम 24 सितम्बर से शुरू होंगे जिसमे एक प्रश्न पत्र होगा और उसके सभी प्रश्नों का हल करना अनिवार्य होगा . सभी विद्यार्थियों को कक्षा 9 से 12 तक सभी विद्यार्थियों को अपनी कक्षा से सम्बंधित पाठ्यक्रम ( syllabus ) का पता होना बेहद ज्यादा जरूरी है .

MP Board Class 12th Hindi Tremasik Paper Solutions | मध्य प्रदेश बोर्ड त्रैमासिक पेपर सलूशन हिंदी

Important Question for Three Monthly Exam

काव्य खण्ड  

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पाठ -1  

आत्म परिचय ,  एक गीत 

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( हरिवंशराय बच्चन )

 

MP Board Class 12th Hindi Tremasik Paper Solutions

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प्रश्न 1. ‘जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं-कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?

उत्तर-कवि कहता है कि यह संसार विरोधाभास मूलकों का एक जीवन्त उदाहरण है। इसमें भला-बुरा, अच्छाई-बुराई, ऊँच-नीच, सुख-दुःख, नर-नारी, स्थूल सूक्ष्म सभी एक साथ पाये जाते हैं। इसी प्रकार, इस जगत में जहाँ एक ओर बुद्धिमान और समझदार लोग रहते हैं, वहीं दूसरी ओर नासमझ और मूर्ख लोग भी निवास करते हैं। ज्ञानी लोग जहाँ परम सत्य (ब्रह्म) के तत्व को समझकर जीवन-भर मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रयत्नशील रहते हैं वहीं मूर्ख लोग सांसारिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति को ही अपने जीवन का अन्तिम लक्ष्य मानते हैं और जीवन भर उसी भौतिक वैभव को प्राप्त करने में लगे रहते हैं। सम्भवतया इसीलिए कविः ने कहा भी है कि जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं।

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प्रश्न 2. ‘शीतल वाणी में आग’-के होने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-विरोधाभास अलंकार से अलंकृत इस पंक्ति का आशय यह है कि जहाँ एक ओर कवि जब अपने गीतों एवं रचनाओं का सस्वर पाठ करता है तो उसकी वाणी सुनने वालों के अत्यन्त कोमल और मीठी लगती है। संवेदनशील हृदय से निकले कवि के उद्गारों में शीतल होती है। किन्तु वास्तविकता में, कवि के गीतों में उसका विद्रोही स्वर छुपा है। वह इस प्रेमरहितरस्वार्थी संसार को अस्वीकार करते हुए विरोध की अग्नि से भर उठता है और ऐसे में उसक वाणी बाहर से शीतल होते हुए भी स्वयं में क्रोध की आग को समेटे रहती है।

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प्रश्न 3. बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे? उत्तर-बच्चे अपने माता-पिता के शीघ्र लौटने की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होगे उनके माता-पिता उनके लिए भोजन की तलाश में सुबह जल्दी घोंसले से निकले हो। ऐसे में भूख से व्याकुल एवं माता-पिता के वात्सल्य से वंचित बच्चे अपने अभिभावकों के जल्दी से जल्दी घर लौटने की प्रतीक्षा में राहुल रहे होंगे यह आशा कर रहे होंगे कि वापस लौटते पर उनके माता-पिता से उन्हें भोजन देंगे अपितु ढेर सारी लौट आएंगे कहा जा सकता है कि माता-पिता के शासन निर्ण की प्रत्याशा में चीनियों में से झांक रहे होंगे।

प्रश्न 4. ‘जग जीवन का भार लिए फिरने से कवि का क्या आशय है ?

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उत्तर-‘जग जीवन का भार लिए फिरने’ से कवि का आशय-सांसारिक रिश्ते-नाते रीति-रिवाजों और उनके कारण उत्पन्न जिम्मेदारियों के निर्वहन से है। इन उत्तरदायित्वों को चाहते हुए भी कवि निभाता है और दुनियादारी के साथ विरोधाभास होते हुए भी वह संसार के साथ सामंजस्य बैठाकर जीवनयापन करता है।

प्रश्न 5. कवि को यह संसार अपूर्ण क्यों लगता है ?

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उत्तर-कवि के अनुसार यह संसार भौतिक सुख-सुविधाओं एवं धन-वैभव को संग्रह करने में डूबा हुआ है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति आपसी प्रेम से दूर बस अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि में रत है। साथ ही, इस संसार में दूसरे लोगों की चरण वन्दना करने वालों की ही जय-जयका होती है। हृदय से रिश्ते बनाने वालों को यह संसार उपेक्षित दृष्टि से देखता है। अतः उपर्युक्त कारणों से यह संसार कवि को नहीं भाता और वह इसे अपूर्ण मानता है।

प्रश्न 6. कौन-सा विचार चिड़ियों के पंखों में चंचलता भर देता है ?

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उत्तर-सुबह जल्दी भोजन की खोज में अपने बच्चों से दूर गई चिड़िया जब संध्याकाल में वापस अपने घोंसले की ओर उड़ रही होती है तो पूरे दिन की थकान के बाद भी उसके परों में एक अलग-सी तीव्रता अथवा चंचलता होती है। वह यह सोचती है कि किसी प्रकार उसके भूख से व्याकुल बच्चे घोंसले से बाहर झाँकते हुए उसकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। उसका यही विचार उसके पंखों में नई ऊर्जा का संचार करता है और वह दुगुने जोश और स्फूर्ति के साथ शीघ्र ही अपने बच्चों से मिलन की चाह में अपने घोंसले की ओर उड़ने लगती है।

 

 

पाठ – 3    

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1. कविता के बहाने   2.  बात सीधी थी पर

(कुंवर नरायण)

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प्रश्न 1. इस कविता के बहाने बताएँ कि, ‘सब घर एक कर देने के माने क्या हैं ?

उत्तर-‘सब घर एक कर देने के माने से आशय है-सभी को एक समान समझना जिस प्रकार बच्चे खेलते समय अपना-पराया, इसका-उसका, सभी का घर अपना समझते  हैं और साधिकार वहाँ पर खेलते-कूदते हैं। उसी प्रकार, एक कवि भी अपने, पराये, जाति, धर्म, वर्ण, रंग, रूप, पंथ, छोटा, बड़ा, निर्धन, धनवान, मेरा, तेरा इत्यादि संकुचित विचारों के परे रखकर सभी को एक समान समझते हुए ही अपनी बात कहता है। वह अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज-देश की प्रत्येक इकाई का प्रतिनिधित्व करता है और उसकी समस्याओं कठिनाइयों को अपने स्वर देता है। कवि की दृष्टि में सभी उसके अपने होते हैं। वह सदैव सम्पूर्ण समाज की बात कहता है।

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प्रश्न 2. कविता के सन्दर्भ में बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं ?

उत्तर-कविता की तुलना फूल से करते हुए कवि कहता है कि अपनी सुगन्ध के लिए प्रसिद्ध फूल क्षणभंगुर होता है। वह अपनी सुन्दरता से सभी को लुभाता है और उसकी सुगन्ध सभी को आनन्द प्रदान करती है किन्तु कुछ ही समय में उसे मुरझाना होता है। ऐसे में उसकी आभा और सुगन्ध दोनों समाप्त हो जाते हैं। दूसरी ओर, कविता एक ऐसा पुष्प है जो एक बार सृजित होने के बाद अनन्त काल तक अपने भावों एवं संस्कारों की महक से श्रोताओं को आनन्दित करता रहता है। वह बिना मुरझाये सदैव महकती रहती है। कविता सनातन होती है। वह चिरस्थायी है। हजार वर्ष पूर्व लिखी गई कविताओं का आनन्द आज भी हम उठा सकते हैं और इसी प्रकार, वर्तमान की कविताओं की सुगन्ध से आने वाली सैकड़ों पीढ़ियाँ चिरकाल तक लाभान्वित हो सकती हैं।

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प्रश्न 3. कविता के खिलने और फूल के खिलने में क्या समानता एवं भिन्नता है ?

उत्तर-कविता एवं फूल दोनों ही खिलते हैं। एक ओर जहाँ पुष्प अपनी सुन्दरता एवं महक से सभी को आकर्षित करता है तो वहीं दूसरी ओर एक सन्देशपरक कविता भी अपनी सुगन्ध से सभी रसिक श्रोताओं को आनन्दित करती है। किन्तु फूल का खिलना एवं सुगन्ध बिखेरना सीमित समय के लिए होता है। कुछ ही समय में खिला हुआ फूल जब मुरझा जाता है तो वह कांतिहीन एवं गंधहीन हो जाता है जबकि कविता की सुकीर्ति और महक युगों-युगों तक लोगों को आकर्षित करती रहती है। अर्थात् कविता का प्रभाव अनन्त काल तक रहता है। इसीलिए कवि व्यंग्य करता हुआ कहता है कि ‘कविता का खिलना फूल क्या जाने ?

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प्रश्न 4.बात पेचीदा होने पर भी कवि पेंच को और अधिक क्यों कसता चला गया ?

उत्तर-कवि द्वारा भाषा के साथ जब अत्यधिक बेतुके प्रयोग किये गये तो भाषा सुलझने के और उलझती चली गई। फिर भी चमत्कारिक भाषा के मोह में फंसा कवि भाषा के पेंच को बेतरतीब कसता चला गया। इसका मुख्य कारण था कविता से अनजान तमाशबीनों का लगातार वाहवाही करना। अपनी इस झूठी प्रशंसा के प्रभाव में कवि भाषा के पेंच को बिना सही चूड़ी बिठाये जबरदस्ती कसता चला गया। परिणाम यह हुआ कि बात की चूड़ियाँ मर गई और वह भाषा के दुचक्र में फंसकर कसावरहित अर्थहीन ही रह गई।

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पाठ – 4   

कैमरे में बंद अपाहिज

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प्रश्न 1. ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है-विचार कीजिए।

उत्तर- कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता सामाजिक सरोकार का मुखौटा लगाये क्रूर संवेदनहीन भावों की कविता है। कविता में बताया गया है कि किस प्रकार दूरदर्शन-मीडियाकर्मी एक विकलांग व्यक्ति के प्रति सहानुभूति दिखाने की आड़ में एक ‘लाइव शो’ के दौरान उससे उसकी विकलांगता को लेकर ऐसे बेतुके एवं अपमानजनक प्रश्न पूछते हैं कि पहले से ही अपने दुःखों के पहाड़ से दबा वह विकलांग व्यक्ति अंतर्नाद कर उठता है। विकलांग व्यक्ति के दर्द को साझा करने की बाहरी कोशिश के पीछे का सच अत्यन्त घिनौना है। करोड़ों दर्शकों के सामने कार्यक्रम प्रस्तोता उस विकलांग को रुलाने का भरसक यत्न करता है ताकि देखने वाले दर्शक भी उसके प्रति उत्पन्न करुणा-भाव के कारण रो पड़ें। वास्तव में, कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य विकलांग की सहायता करना अथवा उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करना नहीं था। बल्कि ऐसे कार्यक्रम की आड़ में कार्यक्रम निर्माता उसकी भावनाओं को आहत करके अपने कार्यक्रम की लोकप्रियता अर्थात् टीआरपी बढ़ाना चाहता था। कार्यक्रम निर्माता का उद्देश्य विशुद्ध रूप से मुनाफा वसूली अर्थात् अपने वित्तीय हित साधना ही था। कार्यक्रम प्रस्तोता द्वारा उस विकलांग व्यक्ति का साक्षात्कार लेते समय पूछे गये प्रश्नों में कहीं भी कारुणिक भाव नहीं था और न ही कार्यक्रम प्रस्तोता का व्यवहार ही सन्तोषजनक था। वास्तव में, कार्यक्रम के दौरान पूछे गये असहज करने वाले प्रश्नों से विकलांग व्यक्ति का सार्वजनिक रूप से मजाक ही बनाया गया।

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इस प्रकार, कहा जा सकता है कि संदर्भित कविता करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की ही कहानी कहती है।

प्रश्न 2. ‘परदे पर वक्त की कीमत है’ कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नजरिया किस रूप में रखा है ?

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उत्तर-उपर्युक्त पंक्ति के माध्यम से कवि ने विकलांग के साक्षात्कार के पीछे का छिपा रूप उजागर किया है। कवि के अनुसार यह कड़वा सच है-कार्यक्रम निर्माताओं का आर्थिक हित। वास्तविकता यह है कि परदे पर दिखाये जाने वाले कार्यक्रमों की कीमत उनकी समयावधि से निर्धारित होती है। उन्हें किसी विकलांग की पीड़ा अथवा उसकी संवेदनाओं में कोई रुचि नहीं होती। उनका उद्देश्य तो कम-से-कम समय में परदे पर दर्शकों के मध्य किसी भी गरीब-लाचार व्यक्ति के घावों को कुरेदकर उससे उत्पन्न जन-भावनाओं का बाजार खड़ा करना होता है ताकि वे कम-से-कम समय में अधिक-से-अधिक मुनाफा अर्जित कर सकें। परदे पर विकलांग की पीड़ा को अधिक करके दिखाना, उसे अपने भाँड़े प्रश्नों के माध्यम से तब तक कुरेदना जब तक की वह रो न दे, वास्तव में एक अनुभवी एवं कुशल कार्यक्रम प्रस्तोताः  का यह एक विशिष्ट गुण होता है। उन्हें उस विकलांग एवं उसके कष्टों से कोई लेना-देना नहीं  होता। वह तो उनके बाजार के लिए एक ‘वस्तु’ के समान ही होता है।

प्रश्न 3. कैमरे में बंद अपाहिज’ शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।

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उत्तर-‘कैमरे में बंद अपाहिज’ शीर्षक एक विकलांग के साक्षात्कार के समय की मनोदशा का सजीव चित्रण करता है। जबरदस्ती जब एक विकलांग व्यक्ति को एक कार्यक्रम के स्टूडियो में कैमरे के सामने बैठा दिया जाता है और उससे उसकी शारीरिक दुर्बलता से सम्बन्धित बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं, तो वह चीत्कार उठता है। उसे ऐसा अनुभव होता है कि सामने लगे कैमरे में वह और उसकी भावनाएँ दोनों मानो कैद हों। बंद स्टूडियो में सीधा प्रसारण करते कैमरे के सम्मुख सहानुभूति के नाम पर जब उसकी बेबसी का मजाक बनाया जाता है और उससे ऊल-जलूल प्रश्न पूछे जाते हैं तो वह स्वयं को फँसा हुआ अनुभव करता है। इन बेतुके प्रश्नों से असहज वह व्यक्ति चाहते हुए भी वहाँ से भाग नहीं सकता है। अत: इस कविता का ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ शीर्षक अत्यन्त सटीक बैठता है।

प्रश्न 4. कार्यक्रम निर्माता किन्हें एक साथ रुलाना चाहते हैं और क्यों ?

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उत्तर-कार्यक्रम निर्माता कैमरे के सामने कैद विकलांग व्यक्ति एवं उस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण देख रहे दर्शकों, दोनों को एक साथ रुलाना चाहते हैं ताकि भावनाओं के उफान से उनके कार्यक्रम को लोकप्रियता प्राप्त हो सके। उनके कार्यक्रम की टीआरपी बढ़ सके। इसमें कार्यक्रम निर्माताओं का अन्तिम और एकमात्र उद्देश्य कार्यक्रम को दर्शकों के मध्य अत्यधिक  लोकप्रिय बनाकर बेशुमार धन कमाना है।

गद्य खंड

      पाठ – 11     

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      भक्तिन     

  लेखक- महादेवी वर्मा

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प्रश्न 1. भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी ? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?

उत्तर –भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन अर्थात् लक्ष्मी था। यह समृद्धि सूचक नाम उसके भाग्य की रेखाओं से नहीं मिलता था। भक्तिन समझदार व बुद्धिमान नारी थी जो इस नाम को बताकर उपहास का पात्र बनना नहीं चाहती थी। शायद व्यावहारिक जीवन और नाम का मेल न मिलने के कारण वह वास्तविक नाम को गुप्त रखती थी। ईमानदारी का परिचय देने के लिए लेखिका को बता दिया परन्तु उसने लेखिका से किसी और को न बताने की प्रार्थना की। लेखिका उसे किस नाम से पुकारे। इस समस्या को हल करने के लिए लेखिका ने लक्ष्मी की कंठी-माला, घुटी चाँद व सफेद वस्त्र देखकर उसे ‘भक्तिन’ जैसा कवित्वहीन नाम दे दिया।

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प्रश्न 2. भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गईं ?

उत्तर-भक्तिन स्वयं को न बदल कर दूसरों को अपने अनुसार बना लेती है। मकई का रात को बना दलिया, सवेरे मढे से खाना, बाजरे के तिल लगाकर बनाए गए पूए, ज्वार के भुने गए भुट्टे के हरे दानों की खिचड़ी, सफेद महुए की लपसी आदि लेखिका को अनचाहे खाना पड़ता था। भक्तिन ने लेखिका को अपनी पसन्द का भोजन खिलाकर देहाती बना दिया था। इस प्रकार भक्तिन के आ जाने से महादेवी देहाती हो गईं।

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प्रश्न 3. सेवक-धर्म में भक्तिन की तुलना हनुमान जी से क्यों की गई है ?

उत्तर-महादेवी वर्मा ने भक्तिन की तुलना हनुमान जी से की है क्योंकि जिस प्रकार हनुमान जी नि:स्वार्थ भाव से राम की सेवा में निरत रहते थे उसी प्रकार भक्तिन भी अपनी मालकिन की नि:स्वार्थ सेवा करने में रात और दिन लगी रहती थी। अनपढ़ होने पर भी लेखिका के लेखन कार्य के सामान को पहचानती थी। लेखिका के सोने के बाद सोती तथा उनके का से पहले उठ जाती थी। उसके जीवन का परम कर्त्तव्य थालेखिका को प्रसन्न रखना। के भ्रमण की एकान्त साथी थी। युद्धकाल में भक्तिन लेखिका को अपने गाँव ले जाकर सुरक्षित रखना चाहती थी। अतः भक्तिन को हनुमान के समान बताया गया है।

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प्रश्न 4. खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी लछमिन अपने पति का प्रेम पाने में पूर्ण सफल क्यों थी?

उत्तर-जिठानियों की चुगली-चबाई की परिणति लछमिन के पति के पत्नी प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी। जिठानियाँ धमाधम पीटी जाती पर उसके पति ने उसे कभी उँगली से भी नहीं छुआ था, क्योंकि उसका पति बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था। इसके  अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति के प्रति रोम-रोम से समर्पित पत्नी को वह बहुत चाहता था। इन्ही धूम के कारण लक्ष्मीन पति के प्रेम को पाने में सफल थी।

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प्रश्न 5. लेखिका के लाख चाहने पर भी भक्तिन नहीं पढ़ पाई थी। क्यों ?

उत्तर-भक्तिन बुद्धिमान है तथा विद्या-बुद्धि के महत्व को जानती है। इसलिए वह लेखिका की पढ़ाई-लिखाई पर अभिमान करके अपने विद्या के अभाव को भर लेती है। एक बार लेखिका ने अंगूठे के निशान के स्थान पर हस्ताक्षर लेने का नियम बनाया तो भक्तिन बड़े कष्ट में पड़ गई। उसे लिखना-पढ़ना आता ही नहीं था, वह पढ़ना भी नहीं चाहती थी। पढ़ना उसे मुसीबत दिखता था, दूसरा सब गाड़ीवान दाइयों के साथ बैठकर पढ़ना उसकी वयोवृद्धता का अपमान था। अत: वह अनपढ़ ही रह गई।

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पाठ – 12   

बाजार दर्शन

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प्रश्न 1.बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है ?

उत्तर-बाजार के सुन्दर रूप का जादू जब चढ़ने लगता है तो मनुष्य व्यर्थ की चीजें खरीदने लगता है। उसकी इच्छाएँ जागती हैं, उसे अपने पास वस्तुओं का अभाव होता है तथा वह अपनी पर्चेजिंग पावर दिखाता है। इसके फलस्वरूप असन्तोष, तृष्णा व ईर्ष्या जागती है जिससे मनुष्य बेकार हो जाता है। थोड़ी देर के लिए स्वाभिमान को सेंक मिलाता अभिमान की गिल्टी और खुराक मिलती है। परन्तु जब बाजार के रूप का जादू उतरने ला है तो पता चलता है कि फैंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद न करके खलल डाली। पैसे की बर्बादी का अनुभव होने लगता है।

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प्रश्न 2. संयमी व्यक्ति अपनी पैसे की पावर को कैसे दिखाते हैं ?

उत्तर-संयमी व्यक्ति फिजूलखर्ची नहीं करते, उनका मन खाली नहीं होता। अत: वे उसी वस्तु को खरीदते हैं जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है। बाजार के आकर्षण में कभी नहीं फंसते हैं। वे अपना पैसा सामाजिक विकास के कार्यों में लगाते हैं। बुद्धि और संयमपूर्वक वह पैसे को जोड़ते हैं। बस खुद के पास पैसे के जुड़ा होने पर उनका मन गर्व से भरा-फूला रहता है।

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प्रश्न 3. लेखक जैनेन्द्र कुमार ने बाजार का जादू किसे कहा है ? इसका क्या प्रभाव पड़ता है ?

उत्तर-बाजार की चमक-दमक के चुम्बकीय आकर्षण को बाजार का जादू कहा है। यह जादू आँखों की राह काम करता है। बाजार के आकर्षण के कारण ग्राहक सजी-धजी चीजों को आवश्यकता न होने पर भी खरीदने को विवश हो जाता है। इसके मोह जाल में फंस कर वह गैर जरूरी वस्तुओं पर अपनी खरीददारी की शक्ति दिखाता है। जब जेब भरी हो और मन खाली हो तो यह जादू खूब चलता है।

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प्रश्न 4. ‘मन के बंद होने’ का क्या अर्थ है ? मन बन्द क्यों नहीं रह सकता है?

उत्तर-मन के बन्द होने का अर्थ है-मनुष्य की इच्छाओं का समाप्त हो जाना। इच्छाओं के समाप्त हो जाने पर मन शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार केवल परमात्मा का है जो सनातन भाव से सम्पूर्ण है। शेष सब अपूर्ण है। अत: मन भी अपूर्ण है। उस कारण मन बन्द नहीं रह सकता क्योंकि मन को बन्द रखना जड़ता है। मन को बन्द रखने की कोशिश अच्छी नहीं है।

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प्रश्न 5. सच्चे ज्ञान का स्वरूप क्या है ?

उत्तर-सच्चा ज्ञान वह है जो मनुष्य में अपूर्णता का बोध कराता है। सच्चा कर्म सदा इस अपूर्णता की स्वीकृति के साथ होता है। इसलिए जबरदस्ती मन को न रोकें। मन की भी सुला चाहिए क्योंकि मन अप्रयोजनीय नहीं है। दूसरी ओर मन को छूट भी नहीं देनी चाहिए क्योंकि वह अखिल का अंग है, खुद कुछ नहीं। मनुष्य अपूर्ण रहकर ही सच्चे ज्ञान को पा सकता है।

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प्रश्न 6. बाजार को सार्थकता और बाजारूपन कौन देता है?

उत्तर- बाजार को सार्थकता वही व्यक्ति देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है ?जो नहीं जानते हैं कि वह क्या चाहते हैं ? वह अपनी पर्चेजिंग पावर के द्वारा बाजार को  एकविनाशक शक्ति-शैतानी शक्ति-व्यंग्य की ही शक्ति देते हैं। यही शक्ति बाजार को बाजारूपन देती है अर्थात् कपट बनाती है। कपट के बढ़ने से परस्पर सद्भाव घट जाता है।

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प्रश्न 7.’चाह’ का मतलब ‘अभाव’ क्यों कहा गया है?

उत्तर-‘चाह’ का अर्थ है-इच्छा। जो बाजार के मूक आमन्त्रण से हमें अपनी ओर खींचती है, जो बाजार मूक आमन्त्रण से हमें अपनी ओर आकर्षित करते हैं। हम अनुभव करते हैं कि यहाँ कितना अधिक है और मेरे यहाँ कितना कम। इसीलिए चाह का अर्थ अभाव से लिया गया है।

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वितान  भाग -2 

पाठ – 1  

सिल्वर वैडिंग

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प्रश्न 1. यशोधर पंत ने किशनदा के क्वार्टर को मैस’ क्यों कहा?

उत्तर-किशनदा का वास्तविक नाम कृष्णकान्त पांडे था। वे गोल मार्केट के तीन कमी वाले क्वार्टर में अकेले ही रहते थे। जहाँ रोजी-रोटी की तलाश में आए यशोधर पंत नामक एक मैट्रिक पास बालक को शरण मिली थी। किशनदा कुँआरे थे और पहाड़ से आए हुए कितने ही लड़के ठीक-ठिकाना होने से पहले उनके यहाँ रह जाते थे। क्वार्टर की व्यवस्था मैस जैसी थी।मिलकर लाओ, पकाओ, खाओ। लड़के हाथ पर हाथ मार कर एक-दूसरे की प्रशंसा करते हुए ठहाका लगाकर हँसते थे। किशनदा ने यशोधर पंत को मैस का रसोइया बनाकर रख लिया। लड़के मिलकर स्वयं मैस की सी व्यवस्था कर लेते थे। इसी कारण किशनदा के क्वार्टर को यशोधर पंत ने ‘मैस’ कहा।

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प्रश्न 2. यशोधर बाबू की पत्नी को अपने मूल संस्कारों से आधुनिक न होते हुए भी मॉड (आधुनिक) क्यों बनना पड़ा?

उत्तर-यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से आधुनिक नहीं थीं लेकिन बच्चों का पक्ष लेने की मातृसुलभ मजबूरी ने उन्हें आधुनिक (मॉड) बना दिया। वह शादी होकर संयुक्त परिवार में आई थी जहाँ पति ने उनका कभी पक्ष नहीं लिया, बस जिठानियों की चलती और उन्हें बुढ़िया की तरह रखा गया। जब यह बात वे अपने बच्चों को बताती तो बच्चे उनके प्रति सहानुभूति दिखाते। वह आगे कहती मेरे बच्चे आदम जमाने की बात नहीं मानेंगे और अब वह भी नहीं मानेगी। यशोधर बाबू तो सारे दिन दफ्तर में रहते, वे बच्चों के साथ रहकर उनका साथ देती थी। लड़की के कहने पर वह कट ब्लाउज, ऊँची एड़ी की सैन्डिल पहनती, बालों में खिजाब व होठों पर लाली लगाती। बच्चों की खुशी के लिए वह आधुनिक (मॉड) बन गई। अब वह स्वयं भी अपने तरीके से जीना चाहती थी।

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प्रश्न 3. “यशोधर बाबू अपने ही परिवार में अप्रासांगिक हो जाते हैं।” कथन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-वर्तमान युग में बदलते मूल्यों की कहानी है ‘सिल्वर वैडिंग’। कहानी का मुख्य पात्र यशोधर पंत प्राचीन व परम्परागत मूल्यों का प्रतीक हैं। इसके विपरीत उनकी सन्तान नए युग के जीवन मूल्यों की प्रतीक है। बड़ा बेटा भूषण तथा पुत्री में बदलते जीवन मूल्यों की अलक है। नई पीढ़ी जन्मदिन, विवाह की वर्षगाँठ पर केक काटना, पार्टी करना, सजावट करना आदि पसन्द करते हैं। नई पीढ़ी पुरानी परम्पराओं को छोड़ती है। इसके विपरीत यशोधर बाबू परम्पराओं से जुड़े रहते हैं। वे सादगी का जीवन पसन्द करते हैं। भौतिक व दिखावटी चकाचौंध से दूर रहते हैं। यहाँ तक कि उनकी पत्नी भी मॉड बन जाती है। बच्चों की हठ के सामने झुक जाती है। पति की परम्पराओं को निभाने में साथ नहीं देती जिसका परिणाम होता है यशोधर बाबू अपने ही घर में अप्रासांगिक हो जाते हैं।

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पाठ – 2  

जूझ

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प्रश्न 1. स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?

उत्तर- न. वा. सौंदलगेकर मास्टर मराठी पढ़ाते थे। वे कविता को सुरीली आवाज, इंट की बढिया चाल और रसिकता के साथ सुनाते थे। लेखक उनसे प्रभावित होने के कारण उनकी कविताओं को खेत पर अकेला अभिनय के साथ दोहराता था। इससे पहले वह कवि को किसी दूसरे लोक का प्राणी मानता था। सौंदलगेकर ने लेखक को कई काव्य-संग्रह पढ़ने को दिए तथा उन कवियों के चरित्र और उनके संस्मरण बताया करते थे। इसके कारण ये कवि लोग लेखक को ‘आदमी’ ही लगने लगे थे। मास्टर साहब स्वयं भी कवि थे। इसलिए लेखक को विश्वास हुआ कि कवि भी अपने जैसा ही एक हाड़-माँस का; क्रोध-लोभ का मनुष्य ही होता है। लेखक को लगा कि वह भी कविता कर सकता है। एक बार उसने देखा कि उसके अध्यापक ने अपने दरवाजे पर छाई हुई मालती की बेल पर कविता लिखी थी। लेखक को लगा कि उसके आस-पास, अपने गाँव में, अपने खेतों में, कितने ही दृश्यों पर कविता बना सकता है। इस प्रकार लेखक के मन में स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास पैदा हुआ।

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प्रश्न 2. ‘जूझ’ कहानी के आधार पर बताइए कि लेखक की माँ ने लेखक की पाठशाला जाने में क्या सहायता की?

उत्तर-लेखक के पिता ने लेखक की पढ़ाई छुड़ाकर उसे खेती के काम पर लगा दिया परन्तु लेखक का मन पाठशाला जाने के लिए तड़प रहा था। एक दिन कण्डे थापते समय लेखक ने माँ से अपनी पढ़ाई के विषय में इच्छा प्रकट की। लेखक ने माँ से कहा कि तू दत्ता जी राव सरकार से कह कि वह पिता जी को समझा दें कि लेखक को पढ़ने भेज दे। माँ व लेखक दोनों रात को दत्ता जी राव देसाई के घर गए। माँ ने दत्ता जी राव को लेखक की इच्छा बता दी और पिता जी के गलत कार्यों के विषय में भी बता दिया। यह भी कहा कि पिताजी को उन दोनों के यहाँ आने की बात मत बताना। दत्ता जी राव ने पिता जी को बुलाकर फटकार लगाई व कहा कि कल से तुम्हारा बेटा स्कूल जाएगा। बाकी समय में खेती का काम करेगा। इस बात पर पिताजी सहमत हो गए तथा लेखक खेत का काम करने के बाद पाठशाला जाने लगा। इस प्रकार लेखक की माँ ने लेखक की पाठशाला जाने में सहायता की।

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मान 3.’ जूझ’ कहानी में युवा पीढ़ी को किन जीवन मूल्यों की प्रेरणा दी गई है?

उत्तर-जूझ’ कहानी में युवा पीढ़ी को निम्नलिखित जीवन मूल्यों की प्रेरणा दी गई,

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(1) संघर्षशीलता-किसी भी काम में सफलता पाने के लिए व्यक्ति को संघर्ष करना सकता है परन्तु आज की युवा पीढ़ी कम परिश्रम में अधिक पाना चाहती है, परन्तु जब कहानी गायक को बचपन से ही संघर्ष करना पड़ा। सर्वप्रथम उसे पाठशाला जाने के लिए संघर्ष करना पड़ा, फिर आर्थिक कमी का संघर्ष, कक्षा में स्थान बनाने का संघर्ष। संघर्ष ही जीवन है ,जो इस जीवन मूल्य को स्थापित करता है।

(2) दूरदर्शिता-व्यक्ति को दूरदर्शी होना अनिवार्य होता है। ‘जन’ कहानी का नायक आनंद बचपन में ही समझ लेता है कि खेती से जीवन नहीं बीतेगा, उसे पढ़ना अनिवार्य है, अत: प्रकार से वह पाठशाला जाकर शिक्षा प्राप्त करके जीवन मकुछ पान का प्रयल करता है।

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(3) परिश्रमशीलता-‘जूझ’ कहानी का नायक युवा पीढ़ी की परिश्रम का सन्देश अपने द्वारा किए गए परिश्रम से देता है। वह सुबह खेतों पर जाता है वहाँ से पाठशाला में अध्ययन करता है, शाम को लौटकर पशु चराता है तथा अपनी पढ़ाई करता है। इस प्रकार परिश्रम का सन्देश देता है।

(4) लगनशीलता-जीवन में सफलता पाने के लिए, लगन का होना अनिवार्य है। ‘जूझ’ कहानी के नायक में शिक्षा प्राप्त करने की अपार लगन थी। जिसके लिए वह परिश्रम करता है। लम्बे समय के बाद पाठशाला जाने पर वह लगन के आधार पर कवि बन जाता है । अतः युवा पीढ़ी को वह लगनशील होने की प्रेरणा देता है।

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अभिव्यक्ति और माध्यम

इकाई –  1   

जनसंचार माध्यम और लेखन

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प्रश्न 1. डेडलाइन किसे कहते हैं?

उत्तर-  अखबार या पत्रिका में समाचारों या रिपोर्ट को प्रकाशन के लिए स्वीकार करने की एक निश्चित समय सीमा होती है उसे डेडलाइन कहते हैं।

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प्रश्न 2 . उल्टा पिरामिड शैली के तहत समाचार को कितने भागों में बांटा जाता है?

 उत्तर-  उल्टा पिरामिड शैली के तहत समाचार को तीन भागों में बांटा जाता है इंट्रो, बॉडी तथा समापन।

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प्रश्न3. भारत में पहला छापाखाना कहां और कब खुला?

 उत्तर-   भारत में पहला छापाखाना सन 1556 में गोवा में खुला।

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प्रश्न 4. जनसंचार के टीवी माध्यम में  ,लाइव, का क्या अर्थ होता है?

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उत्तर-  जनसंचार के टीवी माध्यम में लाइव का अर्थ होता है किसी खबर का घटनास्थल से सीधा प्रसारण।

प्रश्न 5.  इंटरनेट क्या है ? 

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उत्तर  – इंटरनेट एक औजार है जिसे सूचना मनोरंजन ज्ञान संवादों के आदान-प्रदान के लिए प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 6. कौन सा समाचार पत्र केवल इंटरनेट पर ही उपलब्ध है?

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 उत्तर-  प्रभा साक्षी समाचार पत्र केवल इंटरनेट पर ही उपलब्ध   है।

 प्रश्न 7.  भारत की पहली वेबसाइट कौन सी है?

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 उत्तर-  भारत की पहली वेबसाइट रीडिफ़ मनी जाती है।

प्रश्न 8. मुद्रित माध्यमों के लेखन में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

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उत्तर-मुद्रित माध्यमों के लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(1) लेखन में भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शैली का ध्यान रखना जरूरी है। जनसाधारण भाषा पर जोर देना चाहिए।

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(2) समय सीमा और आवंटित जगह के अनुशासन का पालन अनिवार्य है।

(3) लेखन और प्रकाशन के बीच गलतियों और अशुद्धियों को ठीक करना जरूरी होता है।

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(4) लेखन में सहज प्रवाह के लिए तारतम्यता बनाए रखना जरूरी है।

प्रश्न 9. “समस्त जनसंचार माध्यम एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं।” इस कथन की पुष्टि  उदाहरण द्वारा करिये।

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उत्तर-जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की शक्ति उनके परस्पर पूरक होने में है। चाहे रूप में इनमें कितना भी अन्तर हो। जैसे-अखबार में समाचार पढ़ने और उस पर सोचने सन्तुष्टि मिलती है, टी. वी. पर घटनाओं की तस्वीर देखकर उसकी जीवन्तता का एहसास न है, रेडियो पर खबरें सुनते हुए उन्मुक्त अनुभव करते हैं और इण्टरनेट अन्तरक्रियात्मकताव सूचनाओं के विशाल भण्डार हैं। अलग-अलग जरूरतें पूरी करने पर भी एक-दूसरे के  पूरक हैं।

प्रश्न 10.टेलीविजन पर खबर कैसे पेश की जाती है?

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उत्तर-टेलीविजन पर खबर दो तरह से पेश की जाती है। इसका शुरुआती हिस्सा,जसमें मुख्य खबर होती है, बगैर दृश्य के न्यूज रीडर या एंकर पढ़ता है। दूसरे हिस्से में पर्दे चर एंकर की जगह खबर से सम्बन्धित दृश्य दिखाए जाते हैं। इसलिए टेलीविजन पर खबर दो हिस्सों में बँटी होती है जिसमें दृश्य के साथ बँधे होने की शर्त हर खबर पर लागू होती है।

प्रश्न 11. इण्टरनेट पत्रकारिता क्या है ? हिन्दी के उन समाचार-पत्रों के नाम लिखिए जो नेट पत्रकारिता से जुड़े हैं।

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उत्तर-इण्टरनेट पर अखबारों का प्रकाशन या खबरों का आदान-प्रदान ही वास्तव में इण्टरनेट पत्रकारिता है। हिन्दी में नेट पत्रकारिता वेब दुनिया के साथ शुरु हुई। इसके साथ ही हिन्दी के अखबारों ने भी विश्व जाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की। ‘जागरण ,अमर उजाला’, ‘नयी दुनिया’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’ के वेब संस्करण शुरू हुए। ‘प्रभा साक्षी’ नाम से शुरू हुआ अखबार सिर्फ इण्टरनेट पर ही उपलब्ध है।

प्रश्न 12. पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार को दूसरे किस नाम से पुकारा

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उत्तर-पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार को संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं।

प्रश्न 13. फीचर क्या है?

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उत्तर-फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है।

प्रश्न 14. स्तम्भ लेखन क्या है?

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उत्तर-स्तम्भ लेखन अखबार में लिखा जाने वाला विचारपरक लेखन का एक होता है।

प्रश्न 15 . संवाददाता का क्या कार्य होता है?

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उत्तर-  संवाददाता का प्रमुख कार्य विभिन्न स्थानों से खबरें लाना होता है।

प्रश्न 16. किन्हीं दो राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।

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उत्तर-(1) नवभारत टाइम्स (हिन्दी), (2) हिन्दुस्तान (हिन्दी)

प्रश्न 17. फीचर क्या है तथा यह समाचार से किस प्रकार भिन्न है ?

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उत्तर-फीचर एक सुव्यवज़ज़स्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है। फीचर समाचार से निम्नलिखित बातों में भिन्न होते हैं-

(1) समाचार लेखन में वस्तुनिष्ठ व तथ्यों की शुद्धता होने के कारण रिपोर्टर अपने विचार नहीं डाल सकता। फीचर में लेखक को अपनी राय, दृष्टिकोण और भावनाओं को जाहिर करने का अवसर होता है।

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(2) समाचार उल्टा पिरामिड शैली में लिखा जाता है परन्तु फीचर कथात्मक शैली में होता है।

(3) समाचार की भाषा जनता की भाषा होने के कारण बोलचाल की तथा देशज व तद्भव शब्दों से युक्त होती है परन्तु फीचर की परिभाषा सरल, रूपात्मक आकर्षक व मर्मस्पर्शी होती है।

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प्रश्न 18. फीचर लिखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?

उत्तर-फीचर लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

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(1) फीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से सम्बन्धित पात्रों की उपस्थिति जरूरी है।

(2) पाठक महसूस करें कि वे खुद देख व सुन रहे हैं।

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(3) फीचर को मनोरंजक होने के साथ सूजनात्मक भी होना चाहिए।

(4) फीचर लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फार्मूला न होने के कारण कहीं से भी शुरू कर सकते हैं।

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(5) पैराग्राफ छोटा हो और एक पहलू पर भी फोकस करें।

प्रश्न 19. अखबारों में वैचारिक लेखन का क्या महत्व होता है ?

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उत्तर-अखबारों में वैचारिक लेखन का बहुत महत्व होता है। अखबारों की पहचान उनके वैचारिक रुझान से होती है, विचारपूर्ण लेखन से अखबार की छवि बनती है। सम्पादक पृष्ठ पर प्रकाशित सम्पादकीय अग्रलेख, लेख और टिप्पणियाँ वैचारिक लेखन की श्रेणी में हैं। विशेषज्ञों या वरिष्ठ पत्रकारों के स्तम्भ विचारपरक लेखन में ही आते हैं।

प्रश्न 20. सम्पादन का अर्थ बताते हुए सम्पादक के कार्य लिखिए।

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उत्तर-सम्पादन का अर्थ है-किसी लेखन सामग्री से उसकी भाषा-शैली, व्याकरण वर्तनी एवं तथ्यात्मक अशुद्धियों को दूर करना तथा लेखन को पढ़ने योग्य बनाना। पत्रकार से प्राप्त सूचनाओं को उनके महत्व के आधार पर क्रमबद्ध लिखना। समाचार-पत्र की नीति आचार संहिता और जनकल्याण के हित में सन्देश देना होता है क्योंकि सम्पादकीय उस अखडा की आवाज होता है। सम्पादकीय के जरिए अखबार किसी घटना, समस्या या मुद्दे के प्रति अपनी राय प्रकट करके अखबार की छवि को बनाता है।

इकाई –  2  सर्जनात्मक लेखन

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प्रश्न 1. “शब्दों से खेलना” वाक्यांश का क्या अर्थ होता है?

उत्तर-“शब्दों से खेलना” वाक्यांश का अर्थ होता है-शब्दों से मेलजोल बढ़ाना, शब्दों के भीतर  सदियों से छिपे अर्थ की परतों को खोलना। एक शब्द अपने अन्दर कई अर्थ छिपाए रहता है।

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प्रश्न 2. कविता को किन पाँच उँगलियों से पकड़ा जाता है?

उत्तर-कविता को पाँच ज्ञानेन्द्रियों (स्पर्श, स्वाद, दृश्य, घ्राण व श्रवण) रूपी पाँच उंगलियों से पकड़ा जाता है।

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प्रश्न 3. कवि की ताकत क्या होती है ?

उत्तर-कम से कम शब्दों में अपनी बात कह देना और कभी-कभी तो शब्दों या दो वाक्यों के बीच कुछ अनकही छोड़ देना, कवि की ताकत बन जाता है।

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प्रश्न 4. कविता क्या है?

उत्तर-दादी-नानी के मुख की लोरियाँ ही लिखित रूप में कविता कही जा सकती हैं। कविता की व्याख्या करना एक पहेली के समान है। कविता हमारी संवेदना के निकट होती है। वह हमारे मन को छू लेती है। कभी-कभी मन को झकझोर देती है। यह संवेदना, सम्पूर्ण विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा द्वारा अभिव्यक्ता सृष्टि से जुड़ने और अपना बना लेने का बोध है। कविता, काव्य या पद्य साहित्य काय किया जाता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति जो छन् । श्रृंखलाओं में विधिवत बाँधी जाती है। इस प्रकार शब्दों और ध्वनियों से खेलना ही कविता है।

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प्रश्न 5. कविता के पाँच प्रमुख घटक लिखिए।

उत्तर-कविता के निम्नलिखित घटक होते हैं

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(1) भाषा का सम्यक ज्ञान जरूरी होता है।

(2) भाषा में शब्द और शब्दों का विन्यास आकर्षक शैली में होना चाहिए।

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(3) कविता की रचना छंदमुक्त व छंदयुक्त दोनों प्रकार की होती है।

(4) कम से कम शब्दों में अपनी बात कहना कवि का गुण होता है।

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(5) शब्दों का चयन, उनका गठन और भावानुसार लयात्मक अनुशासन कविता के प्रमुख घटक होते हैं।

प्रश्न 6. नाटक काव्य की किस शैली में आता है?

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उत्तर-नाटक काव्य की दृश्य शैली में आता है।

प्रश्न 7. नाटक की अपनी निजी एवं विशेष प्रकृति क्या है ?

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उत्तर-नाटक की अपनी निजी एवं विशेष प्रकृति लिखित रूप से दृश्यता की अग्रसर होना है।

प्रश्न 8. नाटक का शरीर क्या होता है ?

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उत्तर- भारतीय नाट्यशास्त्र में वाचिक अर्थात् बोले जाने वाले शब्द को नाटका शरीर कहा जाता है।

प्रश्न 9 . नाटक कब सफल नहीं होता है ?

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उत्तर-जब नाटककार पहले शिल्प या संरचना को निश्चित कर लेता है फिर उसमें किसी कथ्य या कहानी को फिट करता है तो ऐसी कोशिश (नाटक) सफल नहीं होती है।

प्रश्न 10. किस प्रकार के नाटक अधिक सशक्त होते हैं ?

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उत्तर-जिन नाटकों में असन्तुष्टि, छटपटाहट, प्रतिरोध और अस्वीकार जैसे तत्व होते है वह उतना ही गहरा व सशक्त नाटक होता है।

प्रश्न 11. भारतीय नाट्यशास्त्र के अनुसार नाटक का अन्त कैसा होना चाहिए ?

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उत्तर- भारतीय नाट्यशास्त्र के अनुसार नाटक का अन्त सदैव सुखान्त होना चाहिए।

प्रश्न 12. “नाटक की मूल विशेषता समय का बन्धन है।” इस कथन की पुष्टि करो।

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उत्तर-नाटक का मूल विशेषता है “समय का बन्धन” जिसका तात्पर्य है एक नाटक को शुरू से लेकर अन्त तक एक निश्चित समय-सीमा के भीतर पूरा होना होता है। नाटके का अगर अपनी रचना को भूतकाल या भविष्य से उठाए लेकिन नाटक को वर्तमान काल में संयोजित करना होता है। नाटक के मंच निर्देश सदैव वर्तमान में लिखे जाते हैं। नाटक को एक विशेष समय में, एक विशेष स्थान पर, वर्तमान काल में ही घटित होना होता है। तथ्य यह को है कि साहित्य की दूसरी विधाओं को पढ़ते या सुनते हुए बीच में रोक सकते हैं और फिर कुछ समय बाद फिर शुरू कर सकते हैं पर नाटक के साथ ऐसा नहीं हो सकता।

प्रश्न 13. शब्दों का नाटक में क्या महत्व होता है ?

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उत्तर-साहित्य की समस्त विधाओं के लिए शब्दों का बहुत महत्व होता है। परन्तु नाटक में शब्दों का विशेष महत्व होता है। नाटक जगत में शब्द अपनी एक नयी,निजी और अलग पहचान रखते हैं। भारतीय नाट्यशास्त्र में शब्दों को नाटक का शरीर मानते हैं। नाटककार अधिक से अधिक संक्षिप्त व सांकेतिक भाषा का प्रयोग करता है, शब्द वर्णित न होकर क्रियात्मक अधिक होते हैं, इसीलिए वे दृश्य उपस्थित करने में पूर्ण समर्थ होते हैं। शब्दों का प्रयोग अर्थ के स्थान पर व्यंजना की ओर ले जाता है। शब्दों का प्रयोग घटना व परिस्थिति से सम्बन्धित होना चाहिए। शब्द नाटक तथा समय के साथ तारतम्य बैठाते हैं और दर्शकों को नाटक से बाँधे रखते हैं।

पद तथा गद्य साहित्य का विकास

प्रश्न 1. आधुनिक काल को कितने युगों में विभाजित किया गया है ?

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उत्तर-आधुनिक काल को निम्नांकित युगों में विभाजित किया गया है-

(1) भारतेन्दु युग, (2) द्विवेदी युग, (3) छायावादी युग, (4) प्रगतिवादी युग,(5) प्रयोगवादी युग, (6) नयी कविता।

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प्रश्न 2. छायावादी युग के दो श्रेष्ठ कवियों के नाम लिखिए तथा छायावाद की किन्ही दो रचनाओं के नाम लिखिए।

उत्तर- दो कवियों के नाम- जयशंकर प्रसाद एवं सुमित्रानंदन पंत

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रचनाएं- कामायनी तथा परिमल

प्रश्न 3. छायावाद के चार प्रमुख कवियों के नाम बताइए।

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उत्तर-छायावाद के चार प्रमुख कवि-(1) जयशंकर प्रसाद, (2) सूर्यकान्त त्रिपाठी

‘निराला’, (3) सुमित्रानन्दन पन्त, तथा (4) महादेवी वर्मा हैं।

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प्रश्न 4. रहस्यवाद की परिभाषा देते हुए रहस्यवादी कविता की चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

अथवा

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रहस्यवादी कविता की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर-परिभाषा-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है वही भावना के क्षेत्र में रहस्यवाद है।”

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विशेषताएँ-(1) विरह-वेदना की अभिव्यक्ति ।

(2) आधुनिक काल में रहस्यवादी कविता व्यापक स्वच्छन्दतावादी काव्य क्षेत्र के अन्तर्गत समाविष्ट है।

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(3) कविता में अप्रस्तुत योजना की नूतनता है।

(4) रहस्यवादी कविता में बौद्ध दर्शन के अतिरिक्त उपनिषदों का प्रभाव भी परिलक्षित होता है।

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प्रश्न 5. नई कविता की चार विशेषताएँ लिखिए। 

उत्तर-(1) नई कविता जीवन के हर क्षण को सत्य ठहराती है।

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(2) नई कविता की वाणी अपने परिवेश के जीवन अनुभव पर आधारित है।

(3) नई कविता लघु मानवत्व को स्वीकार करती है।

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(4) नई कविता में जीवन मूल्यों की पुनः परीक्षा की गयी है।

प्रश्न 6. काव्य किसे कहते हैं काव्य के भेद लिखिए।

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उत्तर- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार “रसात्मकम वाक्यं काव्यं” अर्थात रसयुक्त वाक्य ही काव्य है।

काव्य के दो भेद होते हैं- 1. श्रव्य काव्य 2. दृश्य काव्य

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प्रश्न 7. रेखाचित्र से क्या आशय है ?

उत्तर-इसे अंग्रेजी में स्कैच कहा जाता है। चित्रकार जिस प्रकार अपनी तूलिका से चित्र

बनाता है उसी प्रकार लेखक अपने शब्दों के रंगों के द्वारा ऐसे चित्र उपस्थित करता है जिससे

वर्णन योग्य वस्तु की आकृति का चित्र हमारी आँखों के सामने घूमने लगे।

प्रश्न 8. कहानी और नाटक में कोई चार अन्तर लिखिए।

उत्तर-कहानी और नाटक में चार अन्तर इस प्रकार हैं-

(1) कहानी श्रव्य साहिक जबकि नाटक दृश्य साहित्य के अन्तर्गत आता है।

(2) कहानी को पाठक पढ़कर आनन्द है जबकि नाटक अभिनय के द्वारा प्रस्तुत होता है।

(3) कहानी का आकार छोटा होता है उस नाटक बड़े होते हैं। (4) कहानी किसी शैली में लिखी जा सकती है जबकि नाटक में यह शैली का प्रयोग होता है।

प्रश्न 9. रिपोर्ताज किसे कहते हैं ? कोई दो विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर-रिपोर्ताज में किसी आँखों देखी घटना, स्थिति, प्रकृति आदि का सरस, स्वाभाविक वास्तविक एवं रोचक वर्णन किया जाता है। रिपोर्ताज की दो विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

(1) रिपोर्ताज में किसी आँखों देखी घटना, स्थिति आदि का वर्णन होता है। (2) यह वर्णन होता है तथा इसमें कल्पना का प्रयोग नहीं किया जाता है।

प्रश्न 10.लोक साहित्य किसे कहते हैं ? लोकगीत अथवा लोककथा का परिचय

उत्तर-लोक भाषा के माध्यम से जनसामान्य की अनुभूति को प्रस्तुत करने वाला साहित्य लोक साहित्य कहलाता है।

लोकगीत-सामान्य समाज की अनुभूति को उन्हीं की भाषा में गेय रूप में व्यक्त करने बाला साहित्य लोकगीत कहलाता है। इसमें जीवन के यथार्थ का अनुभव भरा होता है।

लोककथा-जनसाधारण के अनुभवों पर आधारित वे कथाएँ जो जनभाषा में होती हैं वे लककथा कही जाती हैं। ये समाज के मनोरंजन का श्रेष्ठ माध्यम होती हैं।

कवि तथा लेखक परिचय

(1)  हरिवंशराय बच्चन

रचनाएँ –   मधुशाला , मधुबाला, मधुकलश, आरती और अंगारे , एकांत संगीत आदि।

भाव पक्ष – हरिवंश राय बच्चन जी की कविताओं में भाव विभोर कर देने वाली रहस्यवादी भावना प्रेम और सौंदर्य का अनूठा संगम देखने को मिलता है उनकी रचनाओं में सामाजिक चित्रण दृष्टिगोचर होता है उनके काव्य में समाज की यथार्थ अभिव्यक्ति दृष्टव्य है बच्चन जी केबल प्रेम मस्ती और सौंदर्य में डूबे रचनाकार  ही नहीं थे बल्कि उनके साहित्य में मानवतावाद की एक बड़ी झलक के दर्शन होते हैं उनकी कविताएं निराश और हताश लोगों के लिए प्रेरणा प्रदान करती हैं उनकी कविताओं में श्रृंगर रस का भरपूर प्रयोग किया गया है। उन्होंने अपनी कविताओं में वियोग श्रंगार का सुंदर वर्णन किया है।कविता में रहस्यात्मकता प्रकट करने के लिए शांत रस का प्रयोग किया है।

कला पक्ष – हरिवंशराय बच्चन जी की भाषा सुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है।

1. भाषा- बच्चन जी की भाषा शुद्ध साहित्य खड़ी बोली है।तत्सम शब्दों का प्रचुरता में प्रयोग किया गया है।

2. शैली- प्रांजल शैली का प्रयोग किया है।

3. अलंकार योजना – शब्दालंकार तथा अर्थलनकार का अधिकता में प्रयोग किया है साथ ही अनुप्रास, यमक , श्लेष, रूपक, उपमा,पुनरुक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग भी किया है।

साहित्य में स्थान- हरिवंश राय बच्चन जी अपनी बात को पाठक के हृदय में उतारने में माहिर थे। उनकी रचनाओं ने इतिहास रचा और भारतीय साहित्य को एक नई दिशा दी जिसके लिए समस्त साहित्य प्रेमी चिरकाल तक उनके आभारी एवं गौरवान्वित रहेंगे। हिंदी साहित्य में उनका स्थान अद्वितीय है।

(2) महादेवी वर्मा

रचनाएँ – नीरजा , निहार, रश्मि, यामा आदि

भाषा – शैली :- महादेवी वर्मा ने सुद्ध साहित्यिक संस्कृत प्रदान भाषा को ही अपनाया है। मुहावरों अंग्रेजी,उर्दू तथा फ़ारसी के कुछ शब्दों का भी प्रयोग किया है।

इनकी शैली के कई अलग अलग रूप देखने को मिलते हैं।जैसे सूत्रात्मक ,चित्रात्मक ,अलंकारिक, गवेषनात्मक भावात्मक विवेचनात्मक शैली आदि।

साहित्य में स्थान –  महादेवी वर्मा हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक हैं तथा छायावादी का माहित्य रताप हैं। जिस प्रकार आपने हिन्दी साहित्य को अपना योगदान काव्य के रूप दिया है उसी प्रकार उनका गद्य साहित्य अर्थ गाम्भीर्य एवं चित्रात्मकता की दृष्टि से अपना शिष्ट स्थान रखता है। इस पीड़ा की गायिका को निबन्ध, संस्मरण और रेखाचित्र के क्षेत्र सदैव याद रखा जाएगा। इनके ममतामय हृदय ने समस्त प्राणियों को प्रेम की डोर से बाँध लिया है। आप मीरा व सरस्वती बन हिन्दी साहित्य के नीलवर्ण आकाश में ध्रुव तारे के समान पदैव अपकती रहेगी।

अपठित गद्यांश तथा पद्यांश

“राष्ट्रीय चरित्र का विकास ही प्रजातन्त्र का आधार है। किसी भी राष्ट्र की नींव उसके राष्ट्रवासियों के चरित्र पर आधारित है। जिस राष्ट्र के नागरिकों का चरित्र जितना महान होता है उसका भविष्य भी उतना ही महान् होगा। प्रजातन्त्र के क्रियान्वयन में राष्ट्र के चरित्र की रक्षा आवश्यक है। चरित्र से नैतिकता का विकास होता है और नैतिकता प्रजातन्त्र की रक्षा कर उसे सफल बनाती है। राष्ट्रीय चरित्र से राष्ट्र के गौरव में वृद्धि होती है। यही कारण है कि भारत अपने राष्ट्रीय चरित्र के नाम पर विश्व के समक्ष अपना मस्तक ऊँचा किये हुए है।

प्रश्न-(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।

(2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।

(3) राष्ट्रीय चरित्र के विकास को किसका आधार कहा गया है ?

(4) चरित्र से किसका विकास होता है ?

उत्तर-(1) शीर्षक-‘राष्ट्रीय चरित्र की उपादेयता’।

(2) सारांश-राष्ट्रवासियों के चरित्र पर राष्ट्र की आधारशिला अवलम्बित होती है।उज्ज्वल चरित्र स्वर्णिम भविष्य का नियामक है। चरित्र से नैतिकता एवं मानव मूल्यों की वृद्धि होती है। राष्ट्रीय चरित्र के बलबूते पर ही आज भारत विश्व रंगमंच पर अपना गौरवपूर्ण स्थान  रखता है।

(3) राष्ट्रीय चरित्र के विकास को प्रजातंत्र का आधार कहा गया है ।

(4) चरित्र से नैतिकता का विकास होता है।

(2)

“संस्कार ही शिक्षा है। शिक्षा इन्सान को बनाती है। आज के भौतिक युग में शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य सुख पाना रह गया है। अंग्रेजों ने देश में अपना शासन सुव्यवस्थित रूप से चला के लिए ऐसी शिक्षा को उपयुक्त समझा, यह विचारधारा हमारी मान्यता के विपरीत है। आज की शिक्षा प्रणाली एकांगी है, उसमें व्यावहारिकता का अभाव है तथा श्रम के प्रति निष्ठा नहीं है। प्राचीन शिक्षा प्रणाली में आध्यात्मिक तथा व्यावहारिक जीवन की प्रधानता थी। यह शिक्षा केवल नौकरी के लिए नहीं थी। अत: आज के परिवेश में आवश्यक हो गया है कि इन दोषों को दूर किया जाय अन्यथा यह दोष सुरसा के समान हमारे सामाजिक जीवन को निगल जाएगा।”

प्रश्न-(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।

(2) आज के युग में शिक्षा का क्या उद्देश्य है ?

(3) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।

उत्तर-(1) शीर्षक-‘संस्कार की महत्ता’।

(2) आज के युग में शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी करके उदर पूर्ति तथा सुख पाना रह गया है।

(3) सारांश-संस्कारों के द्वारा मनुष्य वाली शिक्षा भौतिक सुखों को प्रदान करने वाला हो गयी है। शासन चलाने के उद्देश्य से प्रारम्भ हुई इस शिक्षा में व्यावहारिकता, परिश्रम तय आध्यात्मिकता का अभाव है। शिक्षा से इन दोषों को दूर करना आवश्यक है।

(3)

“मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से अलग उसके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। परिचित तो बहुत होते हैं, पर मित्र बहुत कम हो पाते हैं, क्योंकि मैत्री एक ऐसा भाव है, जिसमें प्रेम के साथ समर्पण और त्याग की भावना मुख्य होती है। मैत्री में सबसे आवश्यक है- परस्पर विश्वास। मित्र एक ऐसा सखा, गुरु तथा माता है जो सबके स्थानों को पूर्ण करता है।”

प्रश्न-(1) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक लिखिए।

(2) मनुष्य एक कैसा प्राणी है ?

(3) समाज से अलग किसके अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती?

(4) मित्र किस-किस के स्थानों की पूर्ति करता है ?

(5) मित्रता के लिए किस बात की आवश्यकता होती है ?

उत्तर-(1) शीर्षक-‘सच्चा मित्र’।

(2) मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।

(3) समाज से अलग मनुष्य के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

(4) एक सच्चा मित्र सखा, गुरु तथा माता इन सभी के स्थानों की पूर्ति करता है।

(5) मित्रता के लिए प्रेम के साथ-साथ समर्पण तथा त्याग की भावना की बहुत आवश्यकता होती है।

पद्यांश (1)

तुम हो धरती के पुत्र न हिम्मत हारी,

श्रम की पूँजी से अपना काज सँवारी।

श्रम की सीपी में ही वैभव पलता है,

तब स्वाभिमान का दीप स्वयं ही जलता है।

मिट जाता है दैन्य स्वयं क्षण में,

छा जाती है नव दीप्ति धरा के कण में,

जागो, जागो श्रम से नाता तुम जोड़ो,

पथ चुनी कर्म का, आलस भाव तुम छोड़ो।

प्रश्न-(1) प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।

(2) प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक लिखिए।

(3) कवि ने किस पूँजी से अपने बिगड़े कार्य सँवारने की बात कही है ?

(4) कवि ने किस भाव को त्यागने की बात कही है ?

उत्तर-(1) भावार्थ-कवि कहता है कि जिस प्रकार से सृष्टि में परिवर्तन होता है,उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भी निरन्तर परिवर्तन होता है। अत: व्यक्ति को जीवन में निराश नहीं होना चाहिए। सदैव स्वाभिमान के साथ परिश्रम करते हुए उद्यम ही सुख की निधि है, श्रम वैभव का प्रवेश द्वार है इसी के कारण स्वाभिमान की भावना जाग्रत होती है तथा निर्धनता समाप्त हो जाती है। मानव को प्रमाद त्यागकर श्रम करना चाहिए।

(2) शीर्षक-‘श्रम की महत्ता’।

(3) कवि ने परिश्रम की पूँजी से अपने बिगड़े कार्य सँवारने की बात कही है।

(4) कवि ने आलस्य-भाव को त्यागने की बात कही है।

(2)

प्राचीन हो या नवीन छोड़ो रूढ़ियाँ जो हों बुरी,

बनकर विवेकी तुम दिखाओ हंस जैसी चातुरी।

प्राचीन बातें ही भली हैं यह विचारों अलीक है,

जैसी अवस्था हो जहाँ, तैसी व्यवस्था ठीक है।

सर्वज्ञ एक अपूर्व युग का हो रहा संचार है,

देखो दिनों दिन बढ़ रहा विज्ञान का विस्तार है।

अब तो उठो क्यों पड़ रहे हो व्यर्थ सोच विचार में,

सुख दूर जीना भी कठिन है श्रम बिना संसार में।

प्रश्न-(1) इस पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।

(2) इस पद्यांश का शीर्षक बताइए।

(3) कवि ने किन्हें छोड़ने की बात की है ?

(4) सुख प्राप्त करने के लिए क्या आवश्यक है ?

उत्तर-(1) भावार्थ-हंस का नीर क्षीर विषय ज्ञान विश्वविख्यात है। कवि मतानुसार मानव को प्राचीन अथवा नवीन रूढ़ियाँ जो उसकी उन्नति में बाधक हैं। उन्हें त्यागकर कल्याणकारी नीतियाँ ग्रहण करनी चाहिए तथा सड़ी-गली रूढ़ियों का मोह त्याग देना चाहिए। आज विज्ञान का युग है। अत: आज के युग में परिश्रम के बिना जीना कठिन है।

(2) शीर्षक-प्रगतिशील दृष्टिकोण’।

(3) कवि ने बुरी रूढ़ियों को छोड़ने की बात की है।

(4) सुख प्राप्त करने के लिए कठिन परिश्रम आवश्यक है।

पत्र लेखन

प्रश्न 5. सचिव माध्यमिक शिक्षा मण्डल, म. प्र., भोपाल को कक्षा 12वीं की अंक-सूची की द्वितीय प्रति भेजने के सम्बन्ध में आवेदन-पत्र लिखिए।

उत्तर-

सेवा में,

सचिव,

माध्यमिक शिक्षा मण्डल, म. प्र.,

भोपाल,

विषय : अंक-सूची की द्वितीय प्रति भेजने के सम्बन्ध में।

महोदय,

मेरी 12वीं परीक्षा 20….. की अंक-सूची खो गयी है। अत: मुझे द्वितीय प्रति भेजने का कष्ट करें। इसके लिए मैं ₹ 20 का बैंक ड्राफ्ट नं. 37701 आपके नाम से भेज रहा हूँ। मुझसे सम्बन्धित जानकारी अग्रानुसार है-

1.नाम।                       :        रवीन्द्र मोहन

2. पिता का नाम।          :       श्री हरिमोहन अग्रवाल

3. परीक्षा।                   :       12वी 20……

4. परीक्षा केन्द्र।            :       शा. एम.के. कॉलेज , सतना

5. अनुक्रमांक               :      614006

6. नियमित/स्वा.            :      नियमित

7. पूरा पता।                 :      श्री हरिमोहन अग्रवाल

54, नया बाजार सतना         8. संलग्नक                 :         ₹20 का बैंक ड्राफ्ट।

दिनांक : 17 जुलाई, 20……

विनीत

रवीन्द्र मोहन

प्रश्न 6. पिता के स्थानान्तरण होने पर प्राचार्य को शाला त्याग-प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए एक आवेदन-पत्र लिखिए।

उत्तर-

सेवा में,

कि प्राचार्य,

का आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय,

टी. टी. नगर, भोपाल (म. प्र.)।

विषय : शाला स्थानान्तरण प्रमाण-पत्र (टी. सी.) प्राप्त करने विषयक।

महोदय,

निवेदन है कि मेरे पिता का स्थानान्तरण भोपाल से छिंदवाड़ा हो गया है। अतः अब मैं वहीं पर अध्ययन करूँगा। आपसे प्रार्थना है कि मेरी शाला स्थानान्तरण प्रमाण-पत्र शीघ्र देने की कृपा करें। मुझसे सम्बन्धित विवरण निम्नानुसार है-

नाम।                          :        राजीव माथुर                                                                  श्री चन्द्रमोहन माथुर

कक्षा एवं वर्ग               :        12वी

प्रवेश वर्ष एवं कक्ष।      :       20….., 11वीं

दिनांक : 12-2-20…..

भवदीय

राजीव माथुर

7, हर्ष नगर, भोपाल

प्रश्न .अपने विद्यालय के प्राचार्य को चरित्र प्रमाण-पत्र प्रदान करते हेतु  आवेदन-पत्र लिखिए।

उत्तर-

सेवा में,

प्राचार्य,

महात्मा गाँधी उच्च माध्यमिक विद्यालय,

विदिशा (म. प्र.)।

विषय : चरित्र प्रमाण-पत्र प्राप्त करते हेतु आवेदन-पत्र।

महोदय,

निवेदन है कि मेरा चयन नीट में हो गया है। प्रवेश के लिए आवश्यक कागजों में मुझे अन्तिम संस्था प्रमुख का चरित्र प्रमाण-पत्र लगाना आवश्यक है। मैंने इसी वर्ष आपके विद्यालय 12वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। मेरा विस्तृत विवरण निम्नवत् है-

नाम।                                    संजय कुमार

पिता का नाम।                        नीरज कुमार

कक्षा।                                    12 (स)

पिता का नाम

छात्र रजिस्टर संख्या।               10/239

कक्षा 6 से ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होता रहा हूँ। खेलों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं न्य पाठ्य-सहगामी क्रिया-कलापों में भी मैं बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता रहा हूँ और कई पुरस्कार जीतता रहा हूँ। मैंने सदैव अपने गुरुजनों, साथियों एवं विद्यालय के अन्य कर्मचारियों के साथ सम्मानित एवं भद्र व्यवहार किया है। मैं विद्यालय का एक अनुशासित छात्र रहा हूँ।

कृपया मुझे चरित्र प्रमाण-पत्र प्रदान करने की कृपा करें।

आपका आज्ञाकारी शिष्य

सजंय कुमार

75, मालवीय कुंज, विदिशा

 

प्रश्न 3. परीक्षाकाल में ध्वनि विस्तारक यन्त्र (लाउडस्पीकर) के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाने हेतु जिलाधीश को पत्र लिखिए।

उत्तर-

सेवा में,

जिलाधीश,

उज्जैन (म. प्र.)।

विषय : परीक्षा अवधि में ध्वनि विस्तारक यन्त्र (लाउडस्पीकर)

पर प्रतिबन्ध लगाने के सम्बन्ध में।

महोदय,

निवेदन है कि माध्यमिक शिक्षा मण्डल की परीक्षाओं का समय निकट है। हम छात्र अपने अध्ययन में व्यस्त हैं, परन्तु जगह-जगह लाउडस्पीकरों की आवाजों से हमारे अध्ययन में व्यवधान पड़ता है। इसके पूर्व महाविद्यालयों के छात्रों ने आपको एक प्रार्थना-पत्र इसी सम्बन्ध में दिया है। धार्मिक कार्यक्रमों, सभा और दुकानों पर निर्बाध रूप से लाउडस्पीकर बजाये जा रहे हैं। इससे ध्वनि प्रदूषण होता है और हम एकाग्रचित्त होकर अध्ययन नहीं कर सकते। अतः नगर के हजारों छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए शीघ्रातिशीघ्र ध्वनि विस्तारक यन्त्रों के परीक्षा अवधि में प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाने सम्बन्धी आदेश जारी करें। आपकी अति कृपा होगी।

भवदीय

राजेश रावल

अध्यक्ष, छात्रसंघ

शास. बालक उ. मा. शाला, उज्जैन

दिनांक : 10 मार्च, 20……

निबन्ध लेखन

पर्यावरण की समस्या

“साँस लेना भी अब मुश्किल हो गया है।

वातावरण इतना प्रदूषित हो गया है।”

[विस्तृत रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) प्रदूषण के विभिन्न प्रकार, (3) प्रदूषण की समस्या का समाधान, (4) उपसंहार।]

प्रस्तावना- प्रदूषण का अर्थ-प्रदूषण पर्यावरण में फैलकर उसे प्रदूषित बनाता है और इसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर उल्टा पड़ता है। इसलिए हमारे आस-पास की बाहरी परिस्थितियाँ जिनमें वायु, जल, भोजन और सामाजिक परिस्थितियाँ आती हैं; वे हमारे ऊपर अपना प्रभाव डालती हैं। प्रदूषण एक अवांछनीय परिवर्तन है; जो वायु, जल, भोजन, स्थल के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों पर विरोधी प्रभाव डालकर उनको मनुष्य व अन्य प्राणियों के लिए हानिकारक एवं अनुपयोगी बना देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जीवधारियों के समग्र विकास के लिए और जीवनक्रम को व्यवस्थित करने के लिए वातावरण को शुद्ध बनाये रखना परम आवश्यक है। इस शुद्ध और सन्तुलित वातावरण में उपर्युक्त घटकों की मात्रा निश्चित होनी चाहिए। अगर यह जल, वायु, भोजनादि तथा सामाजिक परिस्थितियाँ अपने असन्तुलित रूप में होती हैं; अथवा उनकी मात्रा कम या अधिक हो जाती है, तो वातावरण प्रदूषित हो जाता है तथा जीवधारियों के लिए किसी-न-किसी रूप में हानिकारक होता है। इसे ही प्रदूषण कहते हैं। के विभिन्न प्रकार-प्रदूषण निम्नलिखित रूप में अपना प्रभाव दिखाते

(1) वायु प्रदूषण-वायुमण्डल में गैस एक निश्चित अनुपात में मिश्रित होती है और जीवधारी अपनी क्रियाओं तथा साँस के द्वारा ऑक्सीजन और कार्बन डाइ-ऑक्साइड का सन्तुलन बनाये रखते हैं। आज मनुष्य अज्ञानवश आवश्यकता के नाम पर इन सभी गैसों के सन्तुलन को नष्ट कर रहा है। आवश्यकता दिखाकर वह वनों को काटता है जिससे वातावरण में ऑक्सीजन कम होती है। मिलों की चिमनियों के धुएँ से निकलने वाली कार्बन डाइ-ऑक्साइड, क्लोराइड, सल्फर-डाइ-ऑक्साइड आदि भिन्न-भिन्न गैसें वातावरण में बढ़ जाती हैं। वे विभिन्न प्रकार के प्रभाव मानव शरीर पर ही नहीं-वस्त्र, धातुओं तथा इमारतों तक पर भी डालती हैं। यह प्रदूषण फेफड़ों में कैंसर, अस्थमा तथा नाड़ीमण्डल के रोग, हृदय सम्बन्धी रोग, आँखों के रोग, एक्जिमा तथा मुहासे इत्यादि रोग फैलाता है।

(2) जल-प्रदूषण-जल के बिना कोई भी जीवधारी, पेड़-पौधे जीवित नहीं रह सकते। इस जल में भिन्न-भिन्न खनिज तत्व, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं, जो एक विशेष अनुपात में होती हैं। वे सभी के लिए लाभकारी होती हैं, लेकिन जब इनकी मात्रा अनुपात में कम या अधिक हो जाती है; तो जल हानिकारक बन जाता है। अनेक रोग पैदा करने वाले जीवाणु, वायरस, औद्योगिक संस्थानों से निकले पदार्थ, कार्बनिक पदार्थ, रासायनिक पदार्थ, खाद आदि जल प्रदूषण के कारण है। सीवेज को जलाशय में डालकर उपस्थित जीवाणु कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण करके ऑक्सीजन का उपयोग कर लेते हैं जिससे ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और उन जलाशयों में मौजूद मछली आदि जीव मरने लगते हैं। ऐसे प्रदूषित जल से टायफाइड, पेचिस, पीलिया, मलेरिया इत्यादि अनेक जल जनित रोग फैल जाते हैं। हमारे देश के अनेक शहरों को पेयजल निकटवर्ती नदियों से पहुँचाया जाता है और उसी नदी में आकर शहर के गन्दे नाले, कारखानों का अपशिष्ट पदार्थ, कचरा आदि डाला जाता है, जो पूर्णत: उन नदियों के जल को प्रदूषिरखना देता है।

(3) रेडियोधर्मी प्रदूषण-परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों और परमाणु परीक्षणों से जल, वायु तथा पृथ्वी का सम्पूर्ण पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है और वह वर्तमान पीढ़ी को ही नहीं, बल्कि भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए भी हानिकारक सिद्ध हुआ है। इससे धातुएँ पिघल जाती हैं और वह वायु में फैलकर उसके झोंकों के साथ सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हो जाती हैं तथा भिन्न-भिन्न रोगों से लोगों को ग्रसित बना देती हैं।

(4) ध्वनि प्रदूषण-आज ध्वनि प्रदूषण से मनुष्य की सुनने की शक्ति कम हो रही है। उसकी नींद बाधित हो रही है, जिससे नाड़ी संस्थान सम्बन्धी और नींद न आने के रोग उत्पन्न हो रहे हैं। मोटरकार, बस, जेट-विमान, ट्रैक्टर, लाउडस्पीकर, बाजे, सायरन और मशीनें अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण पर्यावरण को प्रदूषित बना रहे हैं। इससे छोटे-छोटे कीटाणु नष्ट हो रहे हैं और बहुत-से पदार्थों का प्राकृतिक स्वरूप भी नष्ट हो रहा है।

(5) रासायनिक प्रदूषण-आज कृषक अपनी कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के रासायनिक खादों, कीटनाशक और रोगनाशक दवाइयों का प्रयोग कर रहा है। अत: जिससे उत्पन्न खाद्यान्न, फल, सब्जी, पशुओं के लिए चारा आदि मनुष्यों तथा भिन्न-भिन्न जीवों के ऊपर घातक प्रभाव डालते हैं और उनके शारीरिक विकास पर भी इसके दुष्परिणाम हो रहे है।

प्रदूषण की समस्या का समाधान-आज औद्योगीकरण ने इस प्रदूषण की समस्या को अति गम्भीर बना दिया है। इस औद्योगीकरण तथा जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न प्रदूषण को व्यक्तिगत और शासकीय दोनों ही स्तर पर रोकने के प्रयास आवश्यक हैं। भारत सरकार ने सन् 1974 ई. में जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम लागू कर दिया है जिसके अन्तर्गत प्रदूषण को रोकने के लिए अनेक योजनाएँ बनायी गई हैं। प्रदूषण को रोकने का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय है-वनों का संरक्षण। साथ ही, नये वनों का लगाया जाना तथा उनका विकास करना भी वन संरक्षण ही है। जन-सामान्य में वृक्षारोपण की प्रेरणा दिया जाना, इत्यादि प्रदूषण की रोकथाम के सरकारी कदम हैं। इस बढ़ते हुए प्रदूषण के निवारण के लिए सभी लोगों में जागृति पैदा करना भी महत्त्वपूर्ण कदम है; जिससे जानकारी प्राप्त कर उस प्रदूषण को दूर करने के समन्वित प्रयास किये जा सकते हैं। नगरों, कस्बों और गाँवों में स्वच्छता बनाये रखने के लिए सही प्रयास किये जाएँ। बढ़ती हुई आबादी के निवास के लिए समुचित और सुनियोजित भवन-निर्माण की योजना प्रस्तावित की जाए। प्राकृतिक संसाधनों का लाभकारी उपयोग करने तथा पर्यावरणीय विशुद्धता बनाये रखने के उपायों की जानकारी विद्यालयों में पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षार्थियों को दिये जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

उपसंहार-इस प्रकार सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के द्वारा पर्यावरण की शुद्धि के लिए वे समन्वित प्रयास किये जाएँगे, जो मानव-समाज (सर्वे सन्तु निरामया) वेद वाक्य की अवधारणा को विकसित करके सभी जीवमात्र के सुख-समृद्धि की कामना कर सकता है। इस विषय में किसी कवि ने अच्छी पंक्तियाँ लिखी हैं-

“प्रकृति का अनमोल खजाना, सब कुछ है उपलब्ध यहाँ।

लेकिन यदि यह नष्ट हुआ तो, जायेगा फिर कौन कहाँ॥”

(2)  विज्ञान :  वरदान या   अभिशाप

खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार;

काट लेगा अंग तीखी है बड़ी यह धार॥

[विस्तृत रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) विज्ञान की देन, (3) चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन, (4) कृषि के क्षेत्र में, (5) मनोरंजन के साधन, (6) संचार के क्षेत्र में,

प्रस्तावना-किसी वस्तु विशेष के एक पक्ष को जब हम देखते हैं तो उसके अन्तर्गत बसन्त कलित क्रीड़ा करते हुआ दृष्टिगोचर होता है लेकिन जब उसके दूसरे पक्ष को देखते हैं तो उसमें अभिशापों की काली छाया मँडराती रहती है। जब हम किसी वस्तु को प्रयोग की कसौटी पर कसते हैं तभी उसके स्वरूप का यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। वैसे विष प्राणघातक होता है, लेकिन जब कोई चिकित्सक उसका शोधन करके औषधि के रूप में प्रयोग करता है तब वही विष प्राणदायक संजीवनी का काम करता है। इस प्रकार हम विष पर दोषारोपण नहीं कर सकते हैं। ज्ञान का प्रयोग ही उसके परिणाम का उद्घोषक होता है। विज्ञान को भी हम एक विशिष्ट विज्ञान के अन्तर्गत स्वीकारते हैं। यह हमारे ऊपर निर्भर है कि चाहे हम विज्ञान को विनाशकारी रूप दें अथवा मंगलकारी भव्य रूप प्रदत्त करें।

विज्ञान की देन-  विज्ञान ने मानव को जो सुख, मनोरंजन तथा अन्य साधन प्रदत्त किए हैं वे अनगिनत हैं। गर्मी एवं शीत दोनों पर विज्ञान का आधिपत्य है। आज ग्रीष्म ऋतु में शीत तथा शीत ऋतु में गर्मी का भरपूर आनन्द ग्रहण किया जा सकता है। रेल, वायुयान, स्कूटर, मोटर कार तथा अन्य शीघ्रगामी साधनों के फलस्वरूप यात्रा बहुत ही सुगम तथा आरामदायक हो गयी है।

चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की देन-आज चिकित्सा के क्षेत्र में भी विज्ञान की अभूतपूर्व देन है। शल्य चिकित्सा, एक्स-रे तथा हृदय प्रत्यारोपण इस बात के ज्वलन्त प्रमाण हैं। प्लास्टिक सर्जरी एवं कृत्रिम अंगों का प्रत्यारोपण भी आज सफलतापूर्वक किया जा रहा है। असाध्य रोगों पर विज्ञान द्वारा आविष्कृत औषधियाँ मानव को नया जीवन प्रदान कर रही हैं।

 कृषि के क्षेत्र में- कृषि के क्षेत्र में भी विज्ञान ने नवीनतम आविष्कारों के माध्यम से कृषकों में एक नवीन आशा तथा उत्साह का संचार किया है। विभिन्न प्रकार की रासायनिक खादों से खेतों में आशातीत अन्न उत्पन्न हो रहा है। थ्रेसर, ट्रैक्टर आदि यन्त्रों के माध्यम से खेतों में बोआई, कटाई सुविधापूर्वक एवं कम समय में सम्पन्न हो रही है।

मनोरंजन के साधन-  विज्ञान ने आज के मानव को मनोरंजन के साधन भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराये हैं। सिनेमा, रेडियो, टेलीविजन एवं टेप रिकॉर्डर मनोरंजन के सुलभ तथा मनभावन साधन हैं। आप यदि उदासीन एवं चिन्ताग्रस्त हैं तो सिनेमा हॉल में तीन घण्टे बैठकर चिन्ताओं से मुक्त हो सकते हैं। दूरदर्शन के माध्यम से यह आनन्द सपरिवार घर पर कमरे में बैठकर भी ग्रहण किया जा सकता है। साथ ही विश्व में घटित होने वाली घटनाओं को भी अपने नेत्रों में साक्षात् निहार सकते हैं।

संचार के क्षेत्र में –  संचार के क्षेत्र में विज्ञान के द्वारा अत्यधिक क्रान्ति हुई है। यह विज्ञान का ही चमत्कार है कि आज हम हजारों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति से उसके सजीव चित्र देखते हुए बातें कर सकते हैं। पलक झपकते ही किसी भी आवश्यक पत्र अथवा कागजातों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित किया जा सकता है।

अभिशाप–  हर वस्तु के दो पहलू होते हैं। एक ओर जहाँ उसमें वरदानों का जाल बिछा रहता है, वहीं दूसरी ओर अभिशापों की काली छाया भी मँडराती है। विज्ञान द्वारा आविष्कृत, अभिशाप के साधन अनगिनत हैं। उनका दुरुपयोग किया जाए तो मानव सभ्यता एवं संस्कृति धराशायी हो जायेगी। जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी नगर इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं। हाइड्रोजन बम, एटम बम, न्यूट्रॉन बम अलमारी में सजाने के लिए नहीं बनाये गये हैं, निश्चित रूप से इनका विस्फोट होगा। विषैली गैसें वातावरण को दूषित तथा विषाक्त बना रही हैं। प्रदूषण तथा शोरगुल भी बढ़ा है। विज्ञान ने मानव के सुख-साधनों में वृद्धि की है, फलत: आज का मानव विलासप्रिय हो गया है।

उपसंहार–  विज्ञान स्वयं में शक्ति नहीं है। वह मानव के हाथ में पड़कर ही शक्ति प्राप्त करता है। इस प्रकार विज्ञान वरदान तथा अभिशाप कुछ न होकर मानव के उपयोग पर ही आधारित है। विज्ञान पर दोषारोपण करना उसी प्रकार निरर्थक है जिस प्रकार चलनी में दूध दुहना तथा कर्मों को दोष देना है। भगवान मानव को सद्बुद्धि प्रदान करे जिससे वह विज्ञान को मानव के कल्याण के लिए प्रयुक्त करे। विज्ञान का कल्याणमय स्वरूप विश्व के कल्याण के लिए है और विनाशमय स्वरूप विनाश के लिए। अत: विश्व कल्याण के लिए ही विज्ञान का प्रयोग किया जाना चाहिए। अत: अंत में कहा जा सकता है-

“अल्फा, बीटा, गामा किरणें शल्य चिकित्सा का वरदान।

मानव को यह शक्ति अपरमित, दे डाली विज्ञान महान॥”

(3)  कोरोना महामारी : लक्षण एवं उपचार

“बन्द करो कोरोना का रोना, बनो सात्विक कुछ न होना।

 

तन-मन जीवन शुद्ध रखो तो, सदा स्वस्थ कोई रोग न होना॥”

[विस्तृत रूपरेखा-(1) प्रस्तावना,(2) कोरोनाकाउद्गम,(3) कोरोनाविषाणु है क्या?,

(4) कैसे फैलता है कोरोना?.(5) बीमारी के लक्षण,(6) बचाव के उपाय,(7) कोरोनार

प्रस्तावना-कोरोना एक विषाणु का नाम है। यह एक विषाणुजनित बीमारी है जिसके तन्त्र को प्रभावित करती है और पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में अत्यधिक कष्ट होता है। इस कुछ प्रकार मानवों के लिए खतरनाक हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जो सीधे तौर पर श्वसन बीमारी की भयावहता का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि संसार के सारे देश इसकी चपेट में आ चुके हैं। इनमें से कई महाशक्तियाँ, जैसे-अमेरिका, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) इसे वैश्विक महामारी घोषित कर चुका है। संक्रमित रोग होने के इटली, रूस इत्यादि भी शामिल हैं और इसके दुष्परिणामों के आगे नतमस्तक हैं। विश्व स्वास्थ्य कारण यह संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने वाले अन्य स्वस्थ व्यक्तियों से फैलता है। अन्य महामारियों की तुलना में इस महामारी ने मानव-जीवन पर अत्यधिक गहरा

कोरोना का उदगम –कोरोना एक प्राणघातक रोग है और इससे बचाव ही इसकी एकमात्र दवा है। अब तक इसकी कोई दवा विकसित नहीं हो सकी है। यह रोग चीन के वुहान शहर से वर्ष 2019 के दिसम्बर माह में प्रारम्भ हुआ और देखते ही देखते पूरे विश्व में तान से फैल गया। विश्व के सभी महाद्वीपों में इसने करोड़ों की संख्या में लोगों को अपनी चपट में ले लिया और लाखों की संख्या में लोग काल-कलवित हो गये। चीन से शुरूआत होने के कारण इसका नाम ‘चाइना वायरस’ भी पड़ा। इसे कोविड-19 के नाम से भी जाना जाता है।

कोराना विषाणु है क्या ?-कोरोना वायरस एक बहुत सूक्ष्म लेकिन प्रभावी वायरस है। कोरोना वायरस मानव के बाल की तुलना में 900 गुना छोटा है। कोरोना वायरस (कोविड) का सम्बन्ध वायरस के ऐसे परिवार से है जिसके संक्रमण से जुकाम से लेकर सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्या हो सकती है। इसके संक्रमण के फलस्वरूप बुखार, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ, नाक बहना और गले में खराश जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। साथ ही, बहुत तेजी से अपने स्वरूप में परिवर्तन भी करता है। इसलिए इसे लेकर बहुत सावधानी बरती जानी चाहिए।

कैसे फैलता है कोरोना ?-यह एक संक्रमित रोग है जो पीड़ित व्यक्ति द्वारा बोलने, खांसने एवं छींकने पर गिरने वाली बूंदों के माध्यम से दूसरे व्यक्तियों में फैलता है। इसके संक्रमण की दर अत्यधिक है।

बीमारी के लक्षण-कोविड-19 / कोरोना वायरस से पहले बुखार होता है। इसके बाद सूखी खाँसी होती है और फिर एक हफ्ते बाद सांस लेने में परेशानी होने लगती है। इन लक्षणों का हमेशा अर्थ यह नहीं है कि कोरोना वायरस का संक्रमण है। कोरोना वायरस के गंभीर मामलों में निमोनिया, सांस लेने में बहुत ज़्यादा परेशानी, किडनी फेल होना और यहाँ तक कि मौत भी हो सकती है। बुजुर्ग या जिन लोगों को पहले से अस्थमा, मधुमेह या हृदय संबंधी बीमारी है, उनके मामले में खतरा गंभीर हो सकता है। जुकाम और फ्लू के वायरस में भी इसी तरह के लक्षण पाए जाते हैं।

बचाव के उपाय-विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इनके अनुसार कोरोना से बचने का सबसे अच्छा उपाय है कि सभी स्वयं की देखभाल करें। आप जितना ज्यादा खुद को सुरक्षित करेंगे उतना ही कम कोरोना होने की सम्भावना रहेगी। यह पाया गया है कि जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है वह कोरोना को आसानी से हरा सकता है। इसलिए अपने खान-पान पर विशेष ध्यान दें। इसके अलावा भी कुछ और भी बचाव हैं जिनका पालन सबको करना चाहिए।

•हमेशा कोई बाहरी वस्तु छूने के बाद साबुन से अच्छे से हाथ अवश्य धोएँ या सेनिटाइजर का उपयोग करें।

•साबुन से हाथ कम-से-कम 30 सेकेण्ड तक अच्छे से धोएँ।

•लोगों से 5 से 6 फीट की दूरी बनाये रखें।

•सार्वजनिक स्थानों पर सदैव मास्क (आवश्यकतानुसार दोहरा मास्क) का प्रयोग करें।

•जरूरी न होने पर घर से बाहर न निकलें।

• बाहर से लाये गये सामान को अच्छे से विसंक्रमित कर लें, तब घर में रखें।

• संदिग्ध स्थिति में खुद को दूसरों से अलग कर लें।

• इस दौरान कहीं भी अनावश्यक यात्रा करने से बचें। आँख, नाक और मुँह को छूने से बचें।

•  न तो किसी के घर जाएँ और न ही किसी को अपने घर बुलाएँ।

• 14 दिनों तक ऐसा करते रहें ताकि संक्रमण का खतरा कम हो सके।

• यदि आप संक्रमित इलाके से आए हैं या किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहे हैं तो आपको अकेले रहने की सलाह दी जाती है। अत: घर पर ही रहें।

कोरोना वायरस का संक्रमण हो जाए तब-कोरोना की पुष्टि होने पर घबराएँ नहीं क्योंकि इस बीमारी से होने वाली मृत्यु दर मात्र 2 से 3 प्रतिशत ही है। उचित देखभाल एवं समय पर प्राप्त चिकित्सकीय सुविधाओं से इस प्राणघातक बीमारी को मात दी जा सकती है। कोरोना वायरस से पीड़ित होने पर रोगी को तत्काल चिकित्सकों की सलाह पर कोरोना अस्पताल में भर्ती करा देना चाहिए। यद्यपि वर्तमान में इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन इसमें बीमारी के लक्षण कम होने वाली दवाइयाँ चिकित्सकीय परामर्श पर दी जा सकती हैं। जब तक रोगी पूर्णतः ठीक न हो जाए और उसकी कोरोना जाँच का परिणाम ‘नेगेटिव’ न आ जाए, उसे दूसरों से अलग रखना चाहिए और विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखभाल में सुरक्षा के सभी उपाय अपनाते हुए रोगी का उपचार करना चाहिए। प्रसन्नता की बात यह है कि दुनियाभर के वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम के पश्चात् विकसित अब कई टीके भी बाजार में आ गये हैं। अपनी बारी आने पर प्रत्येक व्यक्ति को ये टीके अवश्य ही लगवाने चाहिए। इससे बीमारी के विकराल रूप ग्रहण करने की सम्भावना घट जाती है।

उपसंहार-कोरोना से पूरे विश्व में करोड़ों लोग प्रभावित हो चुके हैं और लाखों जानें जा चुकी हैं। इस महामारी ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया है। लोगों से उनके परिजन छिन गये। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो चुके हैं। पूरे विश्व में इस विनाशकारी महामारी ने भारी तबाही मचा रखी है। पूरे विश्व की सरकारें इससे अपनी जनता को बचाने में प्रयत्नशील हैं। ऐसे में हमें सतर्क रहते हुए स्वयं एवं अपने परिवार को इस बीमारी से बचाए रखना चाहिए और अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाना चाहिए। साथ ही, टीके लगवाने चाहिए। सतर्क रहकर और इससे बचाव के उपाय अपनाकर हम इस बीमारी को संसार से सदा के लिए समाप्त करने की लड़ाई में अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं।

 

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