MP Board Class 12th Biology Trimasik Paper Imp Question | मध्य प्रदेश बोर्ड जीव विज्ञान Imp प्रश्न

हाल ही में मध्य प्रदेश बोर्ड ने वर्ष 2021-22 के लिए छात्रों के त्रैमासिक परीक्षा के लिए निर्देश जारी किये है . बोर्ड के अनुसार सभी बच्चों के त्रैमासिक एग्जाम 24 सितम्बर से शुरू होंगे जिसमे एक प्रश्न पत्र होगा और उसके सभी प्रश्नों का हल करना अनिवार्य होगा . सभी विद्यार्थियों को कक्षा 9 से 12 तक सभी विद्यार्थियों को अपनी कक्षा से सम्बंधित पाठ्यक्रम ( syllabus ) का पता होना बेहद ज्यादा जरूरी है .

MP Board Class 12th Biology Trimasik Paper Imp Question

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पाठ 5
वंशागति और विविधता के सिद्धांत

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर-

प्रश्न 1. आनुवंशिकी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-आनुवंशिकी जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें वंशागति एवं विविधता का अध्ययन किया जाता है। वंशागति आनुवंशिकी का आधार है।
प्रश्न 2. बहुप्रभाविता क्या है ?
उत्तर– जब किसी लक्षण के लिए बहुएलील जिम्मेदार होते है तो मिश्रित प्रकार का प्रभाविता पैटर्न  देखने को मिलता है। इस प्रकार की वंशागति को बहुप्रभाविता कहते हैं। इसमें एक एलील पर कई एलील पभाविता दशाते हैं।
प्रश्न 3. सहलग्नता (लिंकेज) किसे कहते हैं?
उत्तर-जब दो जोड़ी जीन एक क्रोमोसोम पर स्थित होते है तो F, पीढ़ी में दोनों जोड़ी जीन के लिए फीनोटाइप अनुपात 9:3:3:1 न होकर इस प्रकार होता है कि जनकीय जीन संयोजन के अधिक होने की प्रवृति होती है। अर्थात् नये या पुनर्योजन संयोजन का अनुपात कम होने की प्रवृति होती है। मॉर्गन ने इस प्रक्रिया को संहलग्नता नाम दिया। कुछ लक्षण X क्रोमोसोम से सहलग्नता दर्शाते हैं। जैसे हीमोफीलिया बीमारी से सम्बंधित जीन।
सहलग्नता मुख्यत: दो प्रकार की होती है-  (i) पूर्ण संहलग्नता और (ii) अपूर्ण सहलग्नता।
प्रश्न 4. क्रॉसिंग ओवर क्या है?
उत्तर-   होमोलोगस क्रोमोसोम के क्रोमेटिड्स के खण्डों का आदान-प्रदान क्रॉसिंग ओवर कहलाता है। इसके परिणामस्वरूप नये आनुवंशिक कॉम्बीनेशन बनते हैं।
प्रश्न 5. मेंडल के प्रभाविता नियम को  उदाहरण सहित समझाईये।
उत्तर-मेंडल ने अपने प्रयोग में अध्ययन के लिए स्पष्ट विपरीतार्थ लक्षणों की जोड़ी का चयन किया। जैसे मटर के पौधे की लम्बाई के लिए दो विपरीतार्थ लक्षण में एक लम्बा पौधा तथा दूसरा बौना। दोनों लक्षण स्पष्ट रूप से विभेद करने योग्य थे। शुद्ध वंशक्रम वाले लम्बे एवं बौने पौधों के बीच चयनित परागण से बने F1 संकर पीढ़ी में उन्होंने सभी पौधे लम्बे पाये। इस अवलोकन का उन्होंने “प्रभाविता के नियम” के तहत विश्लेषण किया। F1 पीढ़ी में सभी पौधे विषमयुग्मजी थे। विपरीतार्थ लक्षण की जोड़ी में जो लक्षण अभिव्यक्त होता है उसे प्रभावी तथा वह लक्षण जो दबा रहता है अप्रभावी या रिसेसिव कहलाता है। इसे मेंडल के प्रभाविता के नियम के नाम से जानते हैं।

लघुत्तरीयर प्रश्नोत्तर-

प्रश्न 6. समयुग्मजी तथा विषम युग्मजी में अंतर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर-  समयुग्मजी तथा विषम युग्मजी में अंतर-

MP board 12th Biology Trimasik Paper 2021-22 Most imp. Solution
प्रश्न 7.  एक संकर क्रॉस तथा द्वि संकर क्रॉस में अंतर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर- एक संकर क्रॉस तथा द्वि संकर क्रॉस में अंतर-
MP board 12th Biology Trimasik Paper 2021-22 Most imp. Solution
प्रश्न 8. मेंडल द्वारा दिए गये “युग्मकों की शुद्धता का नियम” अथवा “पृथक्करण का नियम” की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
उत्तर-   मेंडल ने अपने प्रयोग में देखा कि शुद्ध वंशक्रम वाले लम्बे पौधे एवं शुद्ध वंशक्रम वाले बौने पौधे के संकरण से प्राप्त F1 संकर पीढ़ी में सभी पौधे लम्बे होते थे। परन्तु F1 संकर पौधे स्व-परागण के पश्चात् F2 पीढ़ी में लम्बे एवं बौने पौधे 3 : 1 अनुपात में दिए। F2 में लम्बे पौधे शुद्ध वंशक्रम जितने लम्बे थे तथा बौने पौधे शुद्ध वंशक्रम वाले बौने जनक के बराबर थे।
उन्होंने उपर्युक्त परिणाम की व्याख्या इस प्रकार की कि जब लम्बापन तथा बौनापन के एलील F 1 में एक साथ होते हैं तो प्रभावी लम्बापन वाला एलील ही अभिलक्षित होता है तथा बौनापन का एलील उपस्थित होने पर भी अभिलक्षित नहीं होता।
F1 पौधों में अलील के विसंयोजन से जो युग्मक बनते हैं वो पुनः निषेचन के पश्चात F2  पीढ़ी के पौधे बनाने में भूमिका निभाते हैं। इसे पृथक्करण का नियम कहते हैं। चूँकि लम्बापन एवं बौनापन के एलील शुद्ध वंशक्रम वाले जनक, F1 तथा F2  में समान परिमाण में लक्षण दर्शाते हैं।  अत: मेण्डल ने इसे इस प्रकार व्यक्त किया कि भले ही F1 में लम्बापन एवं बौनेपन के एलील साथ-साथ रहते हैं परन्तु उस दौरान उनमें कोई सम्मिश्रण नहीं होता तथा युग्मक हमेशा ही उस एलील विशेष के संदर्भ में शुद्ध होते हैं। इसे युग्मकों की शुद्धता के नाम से जानते हैं।
प्रश्न 9. हीमोफीलिया तथा थैलेसीमिया मानवों के दो रुधिर सम्बंधी विकार हैं। उनके कारण बताइए तथा दोनों के बीच अंतर भी स्पष्ट कीजिए। आनुवंशिक विकार की उस श्रेणी का नाम बताइए जिसके अंतर्गत ये दोनों रोग आते हैं।
 
उत्तर-    रोग के कारण हीमोफीलिया का कारण रक्त का थक्का बनाने वाले जीन से संबंधित प्रोटीन में उत्परिवर्तन है जबकि थैलेसीमिया लाल रुधिर कणिकाओं या RBC में उपस्थित आल्फा  तथा बीटा ग्लोबिन से संबंधित जीनों में उत्परिवर्तन के कारण होता है।
अंतर-   (1) हीमोफीलिया लिंग सहलग्न (X गुणसूत्र सहलग्न) अप्रभावी लक्षण वाला रोग है जबकि थैलेसीमिया अलिंग ऑटोसोमल अप्रभावी लक्षण वाला रोग है।
(2) हीमोफीलिया बीमारी के एलील क्रिस क्रॉस (Criss-Cross) वंशागति दर्शाते हैं अर्थात् बीमारी के लक्षण माता से पुत्र तथा उस पुत्र से पौत्री में जाते हैं जबकि थैलेसीमिया बीमारी के एलील लिंग से सम्बन्धित नहीं होते।
(3) हीमोफीलिया में कटने पर लगातार रक्त स्राव होता है जबकि थैलेसीमिया में RBC के विघटन होने से कार्यशाली RBC की संख्या काफी कम हो जाती है जिससे रक्तहीनता होती है। उपर्युक्त दोनों ही रोग मेंडेलियन श्रेणी के आनुवंशिक विकार में आते हैं।
प्रश्न 10. मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है?
 
उत्तर-मानव में एक जोड़ी लिंग क्रोमोसोम X एवं Y होते हैं जो लिंग निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मानव में 22 जोड़ी अलिंग क्रोमोसोम होते हैं जिनका लिंग निर्धारण में कोई महत्व नहीं होता है। मानव में नर में XY लिंगJ क्रोमोसोम होते हैं जबकि मादा में xx लिंग क्रोमोसोम होते हैं। अर्थात् नर विषमयुग्मको तथा मादा समयुग्मकी होती हैं। मुख्यत: Y क्रोमोसोम नर लक्षण का निर्धारक होता है। इस प्रकार नर द्वारा दो प्रकार के शुक्राणु बनते हैं-22 + X एवं 22 + Y परन्तु मादा द्वारा एक ही प्रकार के अण्डाणु (22 + X) बनते हैं। अत: बच्चे के लिंग निर्धारण में शुक्राणुओं की निर्णायक भूमिका होती है। निषेचन में 22 +Y शुक्राणु की सहभागिता से नर भ्रूण विकसित होता है जबकि 22 + x संरचना वाले शुक्राणु मादा भ्रूण विकसित करने में मदद करते हैं।
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आरेख चित्र द्वारा लिंग निर्धारण की प्रक्रिया प्रदर्शित
 

 दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर-

प्रश्न 11. एक सामान्य दृष्टि वाली स्त्री जिसका पिता वर्णान्ध है, किसी सामान्य दृष्टि वाले पुरुष से विवाह करती है। उसके पुत्र-पुत्रियों के वर्णान्ध होने की क्या प्रायिकता होगी? आरेख चार्ट की सहायता से उत्तर को स्पष्ट कीजिए।

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उत्तर-वर्णान्धता एक X-सहलग्न अप्रभावी विकार है। अर्थात् यह जीन X क्रोमोसोम पर पाया जाता है। xc वर्णान्ध जीन वाला क्रोमोसोम तथा X सामान्य क्रोमोसोम है। पुत्र में यह विकार एलील अकेले ही वर्णान्धता का कारण होता है परन्तु स्त्रियों में विकार होने के लिए दोनों X क्रोमोसोम विकार एलील वाले होने चाहिए।

Xxc की स्थिति में स्त्रियाँ केवल रोग वाहक होती हैं। इसे निम्न आरेख चित्र की सहायता से समझ सकते हैं।

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वंशावली आरेख द्वारा वर्णांधता रोग का विश्लेषण

निष्कर्ष-सभी पुत्रियाँ सामान्य तथा 50% पुत्र वर्णान्ध एवं 50% सामान्य।

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प्रश्न 12. द्विसंकर क्रॉस किसे कहते हैं? इसे चेकर बोर्ड की सहायता से समझाइए।

उत्तर-   वह क्रॉस जिसमें विपरीतार्थ लक्षण वाले दो गुणों की जोड़ी का अध्ययन एक साथ करते हैं तो उसे द्विसंकर क्रॉस कहते हैं। द्विसंकर क्रॉस की सहायता से मेंडल जानना चाहते थे कि क्या दो अलग-अलग गुणों के विपरीतार्थ लक्षणों की वंशागति में कोई सम्बंध है या नहीं। मेंडल के द्विसंकर क्रॉस को हम बीज के रंग एवं उसके आकार की एक साथ वंशागति का अध्ययन करेंगे।

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बीज का आकार –  मटर के बीज का आकार दो विपरीतार्थ लक्षणों; गोल (प्रभावी एलील) एवं झुरीदार (अप्रभावी एलील) प्रकार का होता है। प्रभावी एलील के लिए R तथा झुरींदार या अप्रभावी एलील के लिए r संकेतक के रूप में प्रयोग करते हैं।

बीज का रंग-  बीज का रंग दो विपरीतार्थ लक्षणों: पीला (प्रभावी) एवं हरा (अप्रभावी) प्रकार का।न होता है। पीले एलील के लिएY तथा हरे एलील के लिए संकेतक का प्रयोग करते हैं।

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द्विसंंकर क्रॉस का चेकर बोर्ड की सहायता से निरूपण
 
 

पाठ – 6

वंशागति का आणविक आधार

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प्रश्न 1. आनुवंशिक पदार्थ की परिभाषा एवं उसके दो आवश्यक लक्षण लिखिए।
उत्तर-   वह पदार्थ जो जनक गुणों का संततियों में वाहन करने का काम करता है, आनुवंशिक पदार्थ कहलाता है। आनुवंशिक पदार्थ होने के लिए किसी पदार्थ में निम्नलिखित आवश्यक लक्षण होनी चाहिए-
(1) वह पदार्थ अपने जैसे अणु का निर्माण करने में सक्षम हो।
(2) उस पदार्थ में जीव के सभी लक्षणों के लिए सूचनाएँ संरक्षित या कोडित होनी चाहिए।
(3) स्थायित्व होना चाहिए।
उपरोक्त आवश्यक लक्षणों पर ध्यान देने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि DNA ही आनुवंशिक पदार्थ है। परन्तु कुछ विषाणुओं में अपवाद स्वरूप RNA आनुवंशिक पदार्थ है।
प्रश्न 2. सिस्ट्रॉन क्या होता है ?
उत्तर- सिस्ट्रॉन DNA का वह विशिष्ट अनुक्रम खण्ड है जो एक पॉलीपेप्टाइड के निर्माण या कूटलेख के लिए सूचना रखता है। यह जीन की अनुलेखन इकाई है।
प्रश्न 3. अनुलेखन क्या है ?
उत्तर-  DNA की एक रज्जुक से जीन विशिष्ट आनुवंशिक सूचनाओं का RNA में प्रतिलिपिकरण की प्रक्रिया अनुलेखन कहलाती है। यह RNA पॉलीमरेज की उपस्थिति में होती है।
प्रश्न 4. अनुवादन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-  m-RNA पर स्थित आनुवंशिक कोडों का अमीनो अम्ल के बहुलकन में अनुवाद करने की विधि अनुवादन कहलाती है। m-RNA पर नाइट्रोजनी क्षारों के अनुक्रम पॉलीपेप्टाइड में अमीनो अम्लों के अनुक्रम को निर्धारित करते हैं। अनुवादन की क्रिया राइबोसोम पर सम्पन्न होती है।
प्रश्न 5.लैक-ओपेरॉन के विभिन्न घटकों के नाम क्रम से लिखिए।
उत्तर- लैक-ओपेरॉन के विभिन्न घटक हैं-(1) रेगुलेटर जीन(i), (2) प्रोमोटर (p), (3) ऑपरेटर (0)
तथा (4) संरचनात्मक जीन।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6 -DNA तथा RNA में आणविक संगठन तथा कार्य के आधार पर अंतर लिखिए
उत्तर –  DNA औऱ RNA में आणविक संगठन तथा कार्य के आधार पर अंतर-
1. DNA डीऑक्सी राइबोज शर्करा से बना द्विकुण्डलित संरचना है। यह अधिक स्थायी होता है। जबकि  RNA राइबोज शर्करा से बना एक कुण्डलित संरचना है। इसमें स्थायित्व कम होता है।
2. DNA के रज्जुकों में उपस्थित डीऑक्सी राइबोज शर्करा पर केवल दो जगहों 5′-पर फॉस्फेट तथा 3′ पर-OH होते हैं। अत: रज्जुक रेखीय होता है। जबकि RNA रज्जुक में उपस्थित राइबोज शर्करा पर 5′ तथा 3’स्थान के अलावा 2′ स्थान पर भी बंध की सम्भावना होने के कारण यह,लूप जैसी संरचना बनाता है।
3. DNA मुख्य अनुवांशिक पदार्थ है। पर यह अनुवादन की क्रिया नहीं कर सकता। इसके अलावा अनुलेखन से बना RNA ही अनुवादन कर सकता है जबकि RNA कुछ वायरस को छोड़कर सभी जीवो में DNA से सूचना लेकर राइबोसोम का निर्माण करने राइबोसोम पर अनुवांशिक सूचना अमीनो अम्ल अनुक्रम के लिए प्रदान करना तथा अमीनो अम्ल को प्रोटीन संश्लेषण स्थल तक पहुंचाने का कार्य करता है।
प्रश्न 7. निम्नलिख्तित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(i) m-RNA, (ii) केन्द्रीय डोग्मा, (ii) F-RNA, (iv) t-RNA., (v) DNA पॉलीमरेज, (vi) अनुलेखन
उत्तर-(i) m-RNA –DNA से अमीनो अम्ल बहुलकीकरण सन्देश m-RNA द्वारा पहँचाया जाता है। m-RNA का अर्थ सन्देशवाहक या messenger RNA से है। इस पर आनुवंशिक कोड पाये जाते हैं। m-RNA प्रोकैरियोट में बिना परिवर्तन के अनुवादन में प्रयुक्त होते हैं, पर यूकैरियोट में बना RNA पश्च-अनुलेखन परिर्वतन के पश्चात कार्यशील m-RNA बनता है। m-RNA पर सूचना 5′ → 3 दिशा में कोडित होती है तथा इस पर अनुवादन भी 5’→3′ दिशा में होता है।
(ii) r-RNA-  यह राइबोसोम का RNA घटक है जो सभी जीवों में प्रोटीन-संश्लेषण के लिए आवश्यक होता है। यह राइबोसोम का लगभग 60% भाग होता है शेष 40% प्रोटीन होते हैं। राइबोसोम पर प्रोटीन संश्लेषण की बहुत सारी सूचनाएँ T-RNA द्वारा अग्रसारित की जाती हैं।
(iii) t-RNA- यह RNA का एक छोटा रज्जुक होता है जो क्लोवर पत्ती संरचना या त्रिआयामी संरचना के रूप में पाया जाता है। यह साइटोप्लाज्म से अमीनो अम्ल अणुओं को m-RNA तक पहुँचाने का कार्य करता है। t-RNA में एक प्रति कोडोन लूप होता है जो m-RNA पर कोड को पहचानने का काम करता है तथा अमीनो अम्लों को विशिष्टता के साथ पहुंचाता है। इसे घुलनशील RNA भी कहते हैं।
 
(iv) DNA पॉलीमरेज-  यह DNA प्रतिकृति के लिए उत्तरदायी एन्जाइम है जो कई रूपों में पाया जाता है। यह DNA के दोनों टेम्पलेट रज्जुकों पर उपस्थित क्षारों के अनुसार पूरक क्षारों को एक-एक कर फॉस्फोडाइस्टर बंध बनाकर जोड़ने का काम करता है जिसे नया रज्जुक 5′ →3′ दिशा में वृद्धि करता है। DNA पॉलीमरेज की सबसे बड़ी खासियत इसकी सटीकता है। यह गलत जुड़े क्षार को हटाकर सही क्षार को जोड़ता है, इसेब प्रूफरीडिंग कार्य कहते हैं। DNA पॉलीमरेज DNA में हुए टूट-फूट या क्षति की मरम्मत का कार्य भी करता है। यह काफी तेज गति से नाइट्रोजनी क्षारों का बहुलकीकरण करता है।
(v) अनुलेखन- अनुलेखन जीन विशिष्ट होता है। जिसमें जीन DNA के टेम्पलेट रज्जुक के क्षार पूरकता के आधार पर RNA पॉलीमरेज एन्जाइम की उपस्थिति में RNA का निर्माण किया जाता है। सामान्यतः जीन में प्रोमोटर, संरचनात्मक तथा समापन क्षेत्र होते हैं। RNA पॉलीमरेज प्रोमोटर क्षेत्र में DNA से जुड़कर उसके रज्जुकों को विलगित करता है तथा टेम्पलेट रज्जुक पर स्थित क्षार अनुक्रम के पूरक क्षारों (या न्यूक्लियोटाइड) को एक-एक कर फॉस्फोडाइस्टर बंध द्वारा 5′- 3′ दिशा में RNA का निर्माण करता है। समापन क्षेत्र में
RNA पॉलीमरेज DNA से अलग हो जाता है तथा RNA भी अवमुक्त हो जाता है।
प्रश्न 8. डी. एन. ए. फिंगरप्रिंटिंग तकनीक में सैटेलाइट DNA के महत्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-DNA या क्रोमोसोम में कई ऐसी जगह होती हैं जहाँ DNA अनुक्रम का छोटा भाग लाखों बार पुनरावृत होता है जिसे मुख्य DNA से घनत्व प्रवणता अपकेन्द्रीकरण द्वारा अलग किया जा सकता है। इसे सैटेलाइट DNA कहते हैं। सैटेलाइट DNA का महत्व निम्न प्रकार से है-
(1) सैटेलाइट DNA उच्च श्रेणी बहुरूपता प्रदर्शित करते हैं जिसके कारण मानव की वैयक्तिक DNAपहचान संभव है।
(2) सैटेलाइट DNA के इसी गुण को आधार मानकर DNA फिंगरप्रिन्टिंग तकनीक विकसित की गयी है।
(3) सैटेलाइट DNA से फिंगरप्रिन्टिंग के लिए प्रोब तैयार किए जाते हैं।
(4) सैटेलाइट DNA का प्रयोग एक सर्वाधिक उपयुक्त आणविक चिन्हक (Molecular marker) के रूप में किया जाता है। ये आणविक चिन्हक विभिन्न फसलों, पशुओं तथा जीवों के प्रजाति पहचान एवं उनके उद्विकास की गुत्थी सुलझाने, खतरनाक रोग की जैसे कैन्सर की ऊत्तक उत्पत्ति पता करने तथा सटीकता से इलाज में मदद करने आदि कई कामों में उपयोग किए जाते हैं।
(5) सैटेलाइट DNA न्यायालीय उपयोग में एक औजार के रूप में उपयोगी होते हैं।
प्रश्न 9. मानव जीनोम परियोजना को महापरियोजना क्यों कहते हैं ?
उत्तर-मानव जीनोम परियोजना एक वृहद् उद्देश्य को लेकर शुरू हुई जिसका उद्देश्य न केवल मानव जीनोम में उपस्थित 3×10° क्षारकों का अनुक्रम पता करना था बल्कि इसे सॉफ्टवेयर की सहायता से आँकड़े के रूप में संग्रह, विश्लेषण व पुनः उपयोग (जिसमें जीन अभिलक्षण, आनुवंशिक बीमारी की सटीकता, मानव उद्विकास आदि क्षेत्रों में) था। इस परियोजना की शुरूआत भले ही अमेरिकन ऊर्जा विभाग तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में हुई, पर बाद में उसे विस्तार देकर पूरे विश्व की प्रयोगशालाओं, वैज्ञानिकों, सरकारी,डॉलर तय की गयी जो उस समय कई छोटे देशों के जी. डी. पी. की कई गुना थी। यह परियोजना 13 वर्ष में
गैर-सरकारी संस्थानों एवं निजी संस्थानों को शामिल किया गया। इस परियोजना की लागत शुरू में 9 बिलियन डॉलर तय की गई जो उस समय कई छोटे देशों की GDP की कई गुना थी यह परियोजना 13 वर्ष में पूरी हुई तथा मानव जीनोम रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत हुई। अतः यह स्वाभाविक है कि मानव जीनोम परियोजना एक महा परियोजना थी।

 

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त्रैमासिक परीक्षा 

 

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