जीवन परिचय : जयशंकर प्रसाद | JayShankar Prasad

जीवन परिचय : जयशंकर प्रसाद | JayShankar Prasad

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छायावाद के प्रवर्तक एवं उन्नायक महाकवि जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के अत्यंत प्रतिष्ठित सुघनी साहू के वैश्य परिवार मे 1890 ई. मे हुआ था। माता – पिता व बड़े भाई के देहवास के कारण अल्पायु मे ही प्रसाद जी को व्यवसाय एवं परिवार के समस्त उत्तरदायित्वो को वहन करना पड़ा। घर पर ही हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, उर्दू, फ़ारसी, संस्कृत, आदि भाषाओ का गहन अध्ययन किया। अपने पैतृक कार्य को करते हुए इन्होने अपने भीतर काव्य – प्रेरणा को जीवित रखा। अत्यधिक विषम परिस्थितियों को जीवटता के साथ झेलते हुए यह सम्राट साहित्यकार हिंदी के मंदिर मे अपूर्व रचना – सुमन अर्पित करता हुआ 14 नवंबर,1937 को निष्प्राण हो गया।

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साहित्यिक गतिविधिया

जयशंकर प्रसाद के काव्य मे प्रेम और सौंदर्य प्रमुख विषय रहा है, साथ ही उनका दृष्टिकोण मानवतावादी है। प्रसाद जी सर्वतोंमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे। प्रसाद जी ने कुल 67 रचनाए प्रस्तुत की है।

कृतिया

इनकी प्रमुख काव्य कृतियों मे विचारधार, प्रेमपथिक, कानन – कुसुम, झरना, आंसू, लहर, कामायनी आदि शामिल है।

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चार प्रबंधात्मक कविताए – शेरसिंह का शस्त्र समर्पण, पेशोला की प्रतिध्वनि, प्रलय की छाया तथा अशोक ke चिंता अत्यंत चर्चित रही।

नाटक – चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जनमेजय का नागयज्ञ, राज्यश्री, अजातशत्रु, प्रायश्चित आदि।

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उपन्यास – कंकाल, तितली एवं इरावती ( अपूर्व रचना )

कहानी संग्रह – काव्य और कला।

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हिंदी साहित्य मे स्थान

प्रसाद जी भाव और शिल्प दोनों दृष्टियों से हिंदी के युग – प्रवर्तक कवि के रूप मे जाने जाते है। भाव और कला, अनुभूति और अभिव्यक्ति, वस्तु और शिल्प आदि सभी क्षेत्रो मे प्रसाद जी ने युगन्तरकारी परिवर्तन किए है। डॉ. राजेश्वर प्रसाद चतुर्वेदी ने हिंदी साहित्य मे उनके योगदान का उल्लेख करते हुए लिखा है – ‘ वे छायावादी काव्य के जनक और पोषक होने के साथ ही, आधुनिक काव्यधारा का गौरवमय प्रतिनिधित्व करते है ‘।

 

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