( एक )
जुल्फ बन कर बिखर गया मौसम ,
धुप को छाव कर गया मौसम ……
मैंनेपूछी थीखैरियत तेरी ,
मुस्करा कर गुजर गया मौसम …..
फिर वो चेहरा नजर नही आया ,
फिर नजर से उतर गया मौसम ….
तितलियाँ बन के उड़ गयी रातें ,
नींद को ख्वाब कर गया मौसम ….
तुम न थे तो मुझे पता न चला ,
किधर आया किधर गया मौसम ….
( दो )
दिल बुरी तरह से धड़कता रहा ,
वो बराबर मुझे ही तकतारहा …..
रोशनी सारी रात कम ना हुई ,
तारा पलकों पे एक चमकता रहा …..
छू गया जब कभी ख्याल तेरा ,
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा …..
कल तेरा जिक्र छिड़ गया घर में ,
और घर देर तक महकता रहा ….
उसके दिल में तो कोई मेल न था ,
मैं खुदा जाने क्यूँ झिझकता रहा ….
मीर को पढ़ते पढ़ते सोया था ,
रात भर नींद में सिसकता रहा …..
( तीन )
बेवफा होगा , बावफा होगा ,
उससे मिलकर तो देख क्या होगा …..
बैर मत पालिए चरागों से …
दिल अगर बुझ गया तो क्या होगा …
सर झुका कर जो बात करता है
तुमसे वो आदमी बड़ा होगा …
कहकहे जो लुटा रहा था कभी,
वो कहीं छुप के रो रहा होगा …..
उससे मिलनाकहाँ मुकद्दर है,
और जी भी लिए तो क्या होगा …..
राहत एक शब में हो गए है रईस,
कुछ फकीरों से मिल गया होगा …
( चार )
अब ना मैं वो हूँ .. ना बाकी हैं ज़माने मेरे …
फिर भी मशहूर है शहरों में फ़साने मेरे ….
जिंदगी है तो नए जख्म भी लग जायेंगे
अब भी बाकी है कई दोस्त पुराने मेरे …..
आपसे रोज मुलाकात की उम्मीद नहीं
अब कहाँ शहर में रहते है ठिकाने मेरे ….
उम्र के खुदा ने साँसों का धनुष तोड़ दिया
मुझ पे एहसान किया आज राम ने मेरे ….
आज जब सो के उठा हूँ, तो ये महसूस हुआ
सिसकियाँ भरता रहा कोई सिरहाने मेरे …
( पांच )
तू शब्दों का दास रे जोगी …
तेरा क्या विश्वास रे जोगी …
इक दिन विष का प्याला पी जा ….
फिर न लगेगी प्यास रे जोगी ..
ये साँसों का बंदी जीवन ..
किसको आया रास रे जोगी ..
विधवा हो गयी साड़ी नगरी …
कौन चला बनवास रे जोगी …
पुर आई थी मन की नदिया
बह गए सब एहसास रे जोगी …
एक पल के सुख की क्या कीमत ..
दुःख है बारह मास रे जोगी …
बस्ती पीछा कब छोड़ेगी ..
लाख धरे सन्यास रे जोगी ….